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prerak prasang in hindi (सच बोलने का पुरस्कार)

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prerak prasang in hindi (सच बोलने का पुरस्कार)

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prerak prasang in hindi (सच बोलने का पुरस्कार)

(सच बोलने का पुरस्कार)

भारतीय इतिहास में गोपाल कृष्ण गोखले का नाम अत्यन्त प्रसिद्ध है। प्रस्तुत घटना उनके ही जीवन से सम्बन्धित है।


बात उस समय की है जब गोपाल कृष्ण गोखले मिडिल स्कूल के विद्यार्थी थे। एक दिन गणित के अध्यापक ने उनकी कक्षा के सभी विद्यार्थियों को गणित के कुछ प्रश्न दिये और घर से उन्हें हल कर लाने के लिए कहा।


गोपाल कृष्ण ने घर जाकर प्रश्नों को हल करना शुरू किया। उन्होंने कई प्रश्न हल कर भी लिए। पर उनमें कुछ प्रश्न ऐसे भी थे जिन्हें गोपाल हल नहीं कर पा रहे थे।

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उनके सही उत्तर नहीं आ रहे थे। जब पर्याप्त प्रयत्न करने पर भी वे प्रश्न हल नहीं हो पाये तो वह अपने एक मित्र के पास गये। मित्र को अपनी समस्या बताई। मित्र उन प्रश्नों का हल जानता था। उसकी सहायता से गोखले ने वे हल कर लिये।


दूसरे दिन गणित अध्यापक ने गृह-कार्य की जाँच की तो पाया कि केवल गोपाल कृष्ण के ही सभी प्रश्नों के हल सही थे। अन्य सभी के एक या एक से अधिक उत्तर गलत थे।


परिणामस्वरूप अध्यापक गोखले से अत्यन्त प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा-“कक्षा के सभी विद्यार्थियों को गोखले जैसा बुद्धिमान बनने का प्रयत्न करना चाहिए।"

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विद्यालय के वार्षिक उत्सव का आयोजन हुआ तो मंच पर से उन्होंने गोखले को पुरस्कार देने की घोषणा कर दी।


गोखले ने अध्यापक की घोषणा सुनी तो अपनी प्रंशसा और पुरस्कार की बात से उनकी मानसिक दशा बड़ी विचित्र हो गई। उनके चेहरे पर सिन्नता के स्थान पर निराशा का भाव झलक रहा था। अध्यापक ने पूछा- “गोखले! तुम उदास क्यों हो? तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए।"


गोखले ने कहा-“गुरो! मैं अपने अपराध को नहीं पचा पा रहा हूँ। एक ओर वह अपराध है और दूसरी ओर प्रशंसा।" ____ गोखले की बात सुनकर सभी उसकी ओर हैरत से देखने लगे।


तभी खड़े होकर गोखले ने कहा-“गुरुवर! मैंने आपको धोखा देने का अपराध किया है। आपके साथ विश्वासघात किया है।

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आपने सभी विद्यार्थियों पर भरोसा करके सच्चाई के साथ प्रश्नों को हल करने के लिए दिया था, पर मैंने ऐसा नहीं किया। मुझसे कई प्रश्नों का हल नहीं हो पा रहा था जो मैंने एक मित्र की सहायता से पूरे किये। मैं न प्रशंसा का पात्र हूँ, न पुरस्कार पाने का अधिकारी। मुझे तो दंड मिलना चाहिए।"


गोखले की बात सुनकर अध्यापक प्रसन्नता से भाव-विभोर हो गये। मुस्कराते हुए उन्होंने कहा-“गोखले! तुम होनहार बालक हो। तुमने अपने सभी साथियों के सामने सच बोलने का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है।


 इसलिए तुम्हें सभी प्रश्नों के सही हल के लिए नहीं, ईमानदारी और सत्य के प्रति आस्था रखने के उपलक्ष्य में पुरस्कृत किया जायेगा।"

साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदय साँच है, ताके हिरदय आप।।

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