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kahani in hindi /भाई का अपमान अपना अपमान

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kahani in hindi /भाई का अपमान अपना

भाई का अपमान अपना अपमान 

पाण्डव वनवास भोग रहे थे। एक दिन युधिष्ठिर को समाचार मिला कि दुर्योधन को किसी शत्रु ने बन्दी बना लिया है।


यह सुनकर वह एकदम घबरा उठे। उन्होंने भीम से कहा-“भीम! दुर्योधन को किसी शत्रु ने बन्दी बना लिया है। तुम जाओ और उसे छुड़ा लाओ।"


युधिष्ठिर के इस आदेश पर भीम अप्रसन्नता प्रकट करते हुए बोला-“भैया! आप मुझे ऐसी आज्ञा दे रहे हैं, जो आपको शोभा नहीं देती।


आप मुझे आज्ञा दे रहे हैं कि मैं उस पापी की सहायता करने जाऊँ, जिसके कारण आज हम वनवास भोगने के लिए विवश हैं।

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उस नीच व्यक्ति ने न्याय-अन्याय और नीति-अनीति का विचार किये बिना हमें कहीं का नहीं छोड़ा।


जिसने अपनी भाभी द्रौपदी का भरी सभा में अपमान किया है, उस नरक के कीड़े के लिए आपको इतनी मोह-ममता पैदा हो गई है, सो क्यों? क्या आपको यह आज्ञा देते हुए ग्लानि नहीं हो रही है?"


भीम के इस प्रकार के रोष-भरे कटु शब्द धर्मराज युधिष्ठिर ने सुने तो वह सिर नीचा करके चुप हो गये। जब दोनों भाइयों के बीच यह मामला चल रहा था, उस समय अर्जुन भी वहाँ उपस्थित था।


उसने समझ लिया था कि बड़े भैया गहरे दुख से व्याकुल हैं। उनकी व्याकुलता को वह सहन नहीं कर पाया। क्षणभर उसने विचार किया। विचार भावना में बदला और भावना क्रिया में।

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उसने न तो युधिष्ठिर से कुछ कहा और न ही भीम से कोई बात की। अपना गाण्डीव धनुष उठाया और वहाँ से चला गया। युधिष्ठिर और भीम उसकी ओर देखते ही रह गये और अपना-अपना अनुमान लगाते रहे।


थोड़ी देर बाद अर्जुन लौटकर आ गया तो युधिष्ठिर ने पूछा-“अर्जुन! तुम एकदम यहाँ से कहाँ चले गये थे?"


अर्जुन बोला-“जो आदेश आपने भैया भीम को दिया था, मैं उसी का पालन करने के लिए गया था। जिस शत्रु ने दुर्योधन को बन्दी बनाया हुआ था, उसका वध करके मैंने दुर्योधन को छुड़ा दिया है।"


यह सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर ने भीम से कहा-“भैया भीम! यद्यपि तुमने जो बुराई दुर्योधन में बताई थी, वह ठीक ही थी, पर वह भी आखिर है तो हमारा ही भाई न! हमारा परस्पर वैर भले ही हो, भले ही हम उससे मतभेद रखते हों, हमारे और उनके बीच शत्रुता हो, पर संसार तो हम सबको भाई ही समझता है। भले ही कौरव सौ हैं और हम पाँच।


दोनों पक्ष अलग-अलग रहते हुए भी हम इकट्ठे एक सौ पाँच हैं। हममें से यदि किसी भी एक का अपमान होता है तो वह शेष एक सौ चार भाइयों का भी अपमान है और इस बात को तुम नहीं समझ सके, अर्जुन ने समझ लिया।"


युधिष्ठिर के मुँह से ऐसा स्पष्टीकरण सुनकर भीम से कोई उत्तर नहीं बन सका। उसने अपना सिर झुका लिया।

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