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विनम्रता

रावण लंका का राजा था। बड़ा विद्वान और बली योद्धा था। एक बार वह दिग्विजय के अभियान पर निकला।


उसके मार्ग में कुबेर नामक राजा का राज्य पड़ा। रावण ने उस पर आक्रमण कर दिया। आक्रमण कर तो दिया, पर उसे जीत नहीं सका।


कई बार आक्रमण करने पर भी उसे सफलता नहीं मिली। रावण की पराजय का कारण यह था कि कुबेर एक विद्या जानता था।


उस विद्या का नाम था 'असालिका।' इस विद्या के कारण वह अपने राज्य के चारों ओर अग्नि का परकोटा बना लेता था। अतः उसे कोई जीत नहीं सकता था और उसका राज्य सभी के लिए अजेय था।

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जब अनेक बार आक्रमण करने पर भी रावण को विजय नहीं मिली तो वह घोर निराशा से आहत हो गया।


जब वह निराशा में डूबा हुआ था, तभी कुबेर की एक दासी उसके पास आई। उसने रावण से कहा-“महाराज! आप इस राज्य को कभी जीत नहीं सकेंगे क्योंकि हमारे राजा एक विद्या में अत्यन्त पारंगत हैं।


वह विद्या है-'असालिका।' असालिका का प्रयोग करके वे अजेय हो जाते हैं और उन्हें कोई हरा नहीं सकता।


उन्हें पराजित करने का केवल एक ही उपाय है और वह यह कि रानी को आप अपनी ओर मिला लें। राजा कुबेर ने यह विद्या उन्हें भी सिखा दी है। मैं रानी का प्रस्ताव लेकर आपके पास आई हूँ।

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उनका कहना है कि यदि आप उन्हें अपनी रानी बनायें तो वे आपको विजयी बना सकती हैं।"


रावण नीतिज्ञ राजा था, धर्म को समझता था, अतः उसने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। दासी निराश हो गई। उसकी उदास मुखमुद्रा को देखकर विभीषण ने उदासी का कारण पूछा तो दासी ने पूरी बात विभीषण को बता दी।


विभीषण ने दासी से कहा- “जाओ, रानी से कह दो कि विभीषण उन्हें अपनी भाभी बनाना चाहता है।"


इस बात का रावण को पता चला तो वह नाराज हो गया और विभीषण से जवाब तलब कर लिया।


विभीषण ने स्पष्टीकरण दिया-“असल में उसे आपकी रानी नहीं बनाना है, यह तो एक राजनीतिक चाल है।

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हम उस विद्या को सीखना चाहते हैं ताकि कुबेर पर विजय प्राप्त की जा सके।"


रावण को इसमें कुछ तथ्य नजर आया। रानी ने विभीषण को उस विद्या का रहस्य दिया। रहस्य को जान लेने पर विभीषण ने रानी से कहा-“मैंने आपको भाभी कहकर पुकारा है।


मैं नहीं चाहता कि मेरी भाभी कोई अनुचित और निन्दनीय कार्य करे। यदि आपको मेरे भाई ने अपना भी लिया तो आप उसकी उपपत्नी ही कही जायेंगी और जैसा सम्मान आपको कबेर के यहाँ मिलता है, वह वहाँ नहीं मिल पायेगा।"


यह बात रानी को जॅच गई।

कहने की आवश्यकता नहीं कि कुबेर पराजित हो गया। उसने भी समझ लिया कि मेरी पराजय रानी के कारण ही हुई है क्योंकि कुबेर को पता था कि यह विद्या मेरे अतिरिक्त केवल रानी ही जानती है।


इतने में ही विभीषण वहाँ आया और कुबेर को सम्बोधित करते हुए 'भैया' कहा।


कुबेर सोचने लगा कि यह मेरे शत्रु का भाई होकर भी मुझे 'भैया' कह रहा है और एक मेरी पत्नी है जिसने पत्नी होकर मेरे साथ विश्वासघात किया है।

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विभीषण बोला-“भैया! मेरी धृष्टता क्षमा करें तो एक बात कहना चाहता हूँ। आपका व्यवहार भाभी के साथ अच्छा नहीं है। अत: वे आपसे सन्तुष्ट नहीं हैं।


आपकी पराजय का कारण रानी नहीं, बल्कि उनके प्रति आपका दुर्व्यवहार है। अब आप इनके साथ अच्छा व्यवहार करें।"


विभीषण ने रावण से कहकर कुबेर का राज्य उसे वापस दिला दिया। लेकिन विजय प्राप्त करने के लिए उसे शत्रु को 'भैया' और शत्रु की पत्नी को 'भाभी' कहना पड़ा। .

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