kahani in hindi
(युधिष्ठिर की धर्म-परीक्षा)
पाण्डवों का वनवास हुआ तो वे वन में घूमते-फिरते अपने दिन काट रहे थे। इसी क्रम में जब वे एक दिन वन में घूम रहे थे तो उन्हें प्यास लगी, इतनी कि वे घबरा गये।
युधिष्ठिर ने भीम को कोई जलाशय खोजने को भेजा। बहुत खोज करने पर भीम को एक जलाशय दिखाई दिया तो वह वहाँ पहुँचा और जल लेने के लिए जलाशय में अंजलि डाली।
वह जल पीना ही चाहता था कि जलाशय के अधिकारी एक यक्ष ने कहा-“जल पीने से पहले मेरे प्रश्नों के उत्तर देने होंगे।
यदि ऐसा नहीं किया तो तुम्हारी मृत्यु निश्चित है।"
भीम ने यक्ष के कथन की अवहेलना करके जल पी लिया और मृत्य को प्राप्त हो गया।
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जब भीम को बहुत देर हो गई और वह नहीं लौटा तो युधिष्ठिर ने क्रमश: अर्जुन, नकुल और सहदेव को भेजा।
इन तीनों से भी यक्ष ने वही कहा जो भीम से कहा था और वे तीनों भी मृत्यु के गले चढ़ गये।
अन्त में युधिष्ठिर उस जलाशय पर आये तो यक्ष ने उनसे भी यही कहा कि पहले मेरे प्रश्नों के उत्तर दोगे, तब ही जल पी सकोगे।
यदि बिना प्रश्नों को सुने और उनका उत्तर दिये जल पीओगे तो तुम्हारी भी वही दशा होगी जो इन चारों की हुई है।
युधिष्ठिर ने अंजलि का जल जलाशय में छोड दिया और यक्ष से प्रश्न करने के लिए कहा।
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यक्ष ने प्रश्न किये और युधिष्ठिर ने उनका ठीक-ठीक उत्तर दे दिया।
युधिष्ठिर के दिये हुए उत्तरों से यक्ष प्रसन्न हो गया तो कहा-“तुम जल पी सकते हो।
साथ ही इन मृत्यु-प्राप्त भाइयों में से किसी भी एक को पुनर्जीवित कर सकता हूँ। बोलो, किसका जीवन चाहते हो?"
बड़ा विचित्र प्रश्न था। युधिष्ठिर सोच में पड़ गये। उन्हें अपने चारों भाई समान रूप से प्रिय थे।
पर बिना एक क्षण की देर किये बोले- “यक्षश्रेष्ठ! आप नकुल को जीवन-दान दे दें।"
-यक्ष आश्चर्य में पड़ गया। उसे उनकी बुद्धि पर हँसी-सी आई। उसने कहा-“धर्मराज! तुम्हें आगे युद्ध लड़ना है।
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उस युद्ध में भीम की गदा और अर्जुन के गाण्डीव की तुम्हें बहुत आवश्यकता पड़ेगी।
फिर वे तुम्हारे सहोदर भाई हैं। इतने उपयुक्त सगे भाइयों को छोड़कर नकुल का पुनर्जीवित कराना कहाँ की बुद्धिमानी है?"
युधिष्ठिर ने तत्काल उत्तर दिया-“हम सभी भाई अपनी माताओं को अत्यन्त प्रिय हैं।
माता कुन्ती के पुत्रों में से मैं जीवित हूँ, किन्तु माद्री माता के तो दोनों ही पुत्र मर चुके हैं।
अतः इनमें से केवल एक को ही जीवित करना है तो माद्री माता के बड़े पुत्र नकुल को पुनर्जीवित होना ही मुझे इष्ट है।"
युधिष्ठिर के उत्तर से यक्ष भाव-विह्वल हो गया और बोला-“युधिष्ठिर! तुम धर्म के तत्व को जानते हो।
वास्तव में तुमने उचित निर्णय लेकर धर्मराज नाम सार्थक कर लिया है। मुझे तुम्हारे उत्तरों और तुम्हारे लिये हए निर्णय से बड़ी प्रसन्नता हुई है, इसलिए मैं तुम्हारे चारों भाइयों को पुनर्जीवित करता हूँ।"
वास्तव में यक्ष यक्ष नहीं था, स्वयं धर्म था। युधिष्ठिर की धर्म-परीक्षा के लिए ही धर्म ने यक्ष का रूप धारण कर लिया था।