kahani sangrah book in hindi
(सत्य और धर्म की रक्षा)
लाखों वर्ष पूर्व की बात है। एक नगर में एक राजा राज्य करता था। उस राजा का नाम था सत्यव्रती। अपने नाम के अनुसार ही वह सत्यप्रतिज्ञा वाला इन्सान था।
उसके यहाँ बाजार लगता था। उसने घोषणा करवा रखी थी कि उसकी नगरी में कोई भी व्यापारी, शिल्पकार या कलाकार अपनी कोई भी वस्तु बेचने के लिए ला सकता है।
यदि बाजार में लाई कोई वस्तु नहीं बिकेगी तो राजा उसे खरीद लेगा। विक्रेता को उस वस्तु का उचित मूल्य दिया जायेगा। इस प्रकार उसे कोई हानि नहीं होने दी जायेगी।
___घोषणा हो जाने के बाद एक कलाकार शनि देवता की मूर्ति उसके नगर के बाजार में बेचने के लिए लाया। मूर्ति अत्यन्त सुन्दर और आकर्षक थी।
ग्राहक जब उस मूर्ति की ओर आकर्षित होते और उससे मूर्ति के बारे में पूछते तो वह बताता कि यह मूर्ति अनूठी तो है ही, अनुपम भी है।
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यह मूर्ति अत्यन्त दुर्लभ है। लेकिन जब लोगों को पता चलता कि यह शनि देवता की मूर्ति है तो उसे खरीदने का उनका विचार बदल जाता और वे आगे बढ़ जाते।
ऐसा इसलिए होता कि ऐसी मान्यता है कि जहाँ शनि उपस्थित हो जायेगा वहाँ से लक्ष्मी प्रस्थान कर जायेगी।
भला कोई भी खरीददार ऐसा कैसे कर सकता था कि शनि देव की उस मूर्ति को खरीदकर अपने घर में रखकर लक्ष्मी को चले जाने देता।
__परिणाम यह निकला कि कलाकार की वह शनिदेव की मूर्ति किसी ने नहीं खरीदी। बिना बिकी रह गई। राजा के पास यह खबर पहुँच गई।
राजा ने उस मूर्तिकार को बुलाया। जब वह आ गया तो राजा ने कहा-“कलाकार! घबराओ मत। मैं अपने वचन पर दृढ़ हूँ, अत: मैं अवश्य ही इस मूर्ति को खरीदूंगा।"
यह देख मंत्री ने राजा को समझाया- “महाराज! यह शनिदेव की मूर्ति है, इसे खरीदने का अनर्थ न करिए।" लेकिन सत्यव्रती राजा अपने वचन से टस से मस नहीं हुआ।
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उसने मूर्तिकार से मूर्ति का मूल्य पूछा और उसके द्वारा बताई हुई सवा लाख मुद्राएँ देकर उस मूर्ति को खरीद लिया।
रात को जब राजा सो गया तो उसके स्वप्न में लक्ष्मी प्रकट हुई। लक्ष्मी ने राजा से कहा-“राजन्! अब मैं आपके घर से जा रही हूँ।"
राजा ने पूछा-“क्यों? तुम क्यों और कहाँ जा रही हो?"
लक्ष्मी ने कहा- “इसलिए कि आपने मेरे निवास स्थान पर शनि को प्रतिष्ठित कर दिया है। अतः मैं यहाँ नहीं रह सकती।"
लक्ष्मी की बात सुनकर राजा को हँसी आ गई। वह बोला- “मैं जानता हूँ कि तुम यहाँ से नहीं जाओगी।"
लक्ष्मी ने आश्चर्यपूर्वक पूछा-“क्यों? तुम्हें कैसे लगता है कि मैं यहाँ से नहीं जाऊँगी?" ___“क्योंकि मैं जानता हूँ कि लक्ष्मी वहीं निवास करती है, जहाँ धर्म रहता है और धर्म वहाँ रहता है जहाँ सत्य रहता है।
मैंने वचन दे रखा था कि मेरे नगर के बाजार में जो वस्तु नहीं बिकेगी, उसे मैं खरीद लूँगा और विक्रेता को हानि नहीं होने दूंगा। इसलिए मैंने यह मूर्ति खरीदी है।
इसे खरीदकर मैंने सत्य की रक्षा की है। इस कार्य के लिए यदि आप रूठकर चली भी जायेंगी तो भी मैं अपने इस सत्य-पालन के कर्तव्य से मुँह नहीं मोडूंगा।"
लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर कहा-“राजन्! तुम मेरी परीक्षा में सफल हुए। मैं यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगी।"