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motivational kahani in hindi (सुख साईं मत भूल)

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(सुख साईं मत भूल)

किसी गाँव में एक पुजारी रहता था। यजमानों के घर पूजा-पाठ करके प्राप्त हुई सामग्री से ही उसके घर का निर्वाह होता था। उसके निर्वाह में किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं थी। 


पर विधि का विधान, अचानक ही उसकी आय में कमी आने लगी और वह चिन्तित रहने लगा। कारण यह था कि गाँव के अधिकांश लोग शहर में नौकरी करने चले गये थे।


 जब घर का खर्च चलना कठिन हो गया तो एक दिन पुजारी जी ने भी शहर का रास्ता पकड़ा। पुजारी मुनीमी (लेखा-जोखा) का जानकार था। जब शहर में पहुँचा तो संयोग से एक सेठ ने उसे अपने यहाँ मुनीम बना लिया।


सेठ के यहाँ पहले से ही दो अन्य मुनीम काम कर रहे थे। उन्हें तीसरे मुनीम की नियुक्ति रास नहीं आई, सो वे इस नये मुनीम से द्वेष रखने लगे।

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तब तो उनके द्वेष की सीमा ही लँघ गई जब नये मुनीम की ईमानदारी से प्रसन्न होकर सेठ ने उसे प्रधान मुनीम बना दिया। वे उस पुजारी मुनीम के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगे।


नया मुनीम जब अपना काम समाप्त करके घर लौटता था तो वह एक कमरे को अन्दर से बन्द करके भगवान का भजन-ध्यान करता था। यह कार्य प्रतिदिन एक घंटे तक चलता था। इस एक घंटे की अवधि में कमरे में कोई भी प्रवेश नहीं करता था।


एक घंटा कमरा बंद रखने की जानकारी जब पहले से नियुक्त पुराने दोनों मुनीमों को मिली तो उन्हें लगा कि यह मुनीम अवश्य ही कुछ अवैध कार्रवाई करता है।


एक दिन उन्होंने सेठ से कहा- “सेठजी! हम लोगों ने मुनीम बने पुजारी को कमरे में बंद होकर रुपये गिनते देखा है।"

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पहले तो सेठ को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब उससे बार-बार शिकायत की जाती रही तो उसे भी शक हो गया। एक दिन दोनों मुनीमों को साथ लेकर शाम के समय सेठ ने पुजारी को कई बार आवाज दी, पर कमरा नहीं खुला।


इस पर सेठ की आज्ञा से धक्के और भारी प्रहार करके कमरे का दरवाजा खुलवा दिया। वहाँ पहुँचकर सबने देखा कि पुजारी कमरे में ट्रंक खोलकर बैठा था।


ट्रंक में कुछ कपड़े और थोड़े से पैसे थे। फर्श पर कुछ पुस्तकें पड़ी थीं। अगरबत्ती जल रही थी। सेठ ने सब कुछ समझ लिया। उसने पुराने मुनीमों को फैसला सुनाया-“आज से मैं तुम्हें नारैकरी से बर्खास्त करता हूँ।"


_पुजारी मुनीम बोला- “सेठजी! इनका कोई दोष नहीं है। दोष है तो केवल यह कि आप कानों के कच्चे हैं। इसलिए आपने इनके शिकायत करने पर किसी प्रकार की जाँच नहीं की और यहाँ आ गये।


मैं कमरे को बंद करके एकान्त में अपने बीते समय की याद कर लेता हूँ। साथ ही भगवान से प्रार्थना भी कर लेता हूँ कि वह मेरे मन में बुरे विचार पैदा न होने दे। मेरा मानना है कि जो अपने मुसीबतों के समय को भुला देता है, वह अशुभ मार्ग पर चलने लगता है।"

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