प्रेरणादायक हिंदी कहानियां PDF
(जाति-पाँति पूछे नहिं कोई )
बात 1973 की है। एक सज्जन थे, जिनका नाम था-आनन्द प्रकाश गौतम। गौतम जी देहरादून में भारतीय सर्वेक्षण विभाग में काम करते थे।
दीपावली की छुट्टियों में अपने घर मुजफ्फरनगर आये हुए थे। अवकाश के दिन बीते तो वे अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर देहरादून के लिए चले। सर्दियाँ शुरू हो गई थीं सो ऊनी और गर्म कपड़े एक बैग में भर दिये।
परिवार सहारनपुर तक ट्रेन में गया। सहारनपुर से देहरादून के लिए बस पकड़नी थी। वे बस स्टैण्ड पर पहुँच गये।
बच्चों और पत्नी को एक साथ बिठाकर आनन्दप्रकाश जी टिकट लेने गये तो कपड़ों का बैग भी साथ ही ले गये।
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टिकट लेते समय बैग वहीं भूल गये और सब लोग बस में बैठ गये। सहारनपुर से देहरादून पहुँचने तक बैग का ध्यान किसी को भी नहीं आया।
देहरादून पहुँचकर उन्हें एकदम बैग का ध्यान आया। वे पत्नी से बोले-“बैग तो सहारनपुर बस-स्टेशन पर ही छूट गया।"
पत्नी हैरान रह गई पर बोली-“चलो छोड़ो, अब मिलना तो है नहीं, जो होगा सो होगा।"
गौतम जी को स्वयं पर क्रोध आने लगा।
खैर, घर पहुँचकर वे कार्यालय चले गये। पर कार्यालय में उनका मन नहीं लगा। वे अपने एक मित्र के साथ देहरादून बस स्टेशन पर पहुँचे।
उन्होंने स्टेशन मास्टर से प्रार्थना की कि वे सहारनपुर बस स्टेशन पर हमारी बात करवा दें ताकि उनसे हम खोये हुए बैग के बारे में कुछ पूछ सकें।
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उनहोंने फोन मिलाया तो सहारनपुर में किसी ने फोन नहीं उठाया। स्टेशन भास्टर ने गौतम जी से कहा-“सामने खड़ी बस सहारनपुर जा रही है, आप उस बस के ड्राइवर से बात कर लीजिए।
यही बस शाम को सात बजे यहाँ वापस आ जायेगी। सौभाग्य से बैग वहाँ मिल गया तो यह ले आयेगा।
आप सात बजे आकर पता कर लेना। गौतम जी ने ड्राइवर से बात की और ड्राइवर ने आश्वासन दिया कि बैग मिल गया तो लेता आऊँगा।
उन्होंने ड्राइवर से उसका नाम पूछा तो उसने कहा-"नाम पूछकर आप क्या करोगे? वैसे मेरा नाम इमरान है।"
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बस चली गई। थोड़ी देर बाद उनकी किसी से बात हुई तो उसने कहा-“आपका बैग नहीं मिलेगा। ड्राइवर मुसलमान है, आपने उस पर भरोसा करके ठीक नहीं किया।"
पर बस तो जा चुकी थी। ज्यों-त्यों करके सात बजे तक का समय आया और वे फिर देहरादून बस स्टेशन पर आ गये। बस अभी आई नहीं थी।
मन में आशा-निराशा दोनों ही आ और जा रही थीं। तभी बस आती दिखाई दी।
बस आकर रुकी तो गौतम जी एकदम ड्राइवर के पास पहुँचे और प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखने लगे।
तभी ड्राइवर ने उनका बैग उन्हें सौंपते हुए कहा-“आप किस्मत वाले हैं। बैग मिल गया है।"
यह कहकर ड्राइवर ने बैग उन्हें दे दिया।
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गौतम जी की प्रसन्नता का कोई ठिकाना न था। उन्होंने प्रसन्न होकर उस ड्राइवर की ओर कुछ रुपये बढ़ाते हुए कहा-“तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया!
लो, बच्चों के लिए कुछ मिठाई लेते जाना।"
ड्राइवर ने पैसे लेने से इनकार करते हुए कहा-“मैंने रोजा रखा हुआ है और खुदा की इबादत में एक नेक काम किया है।
मेरा रोजा कामयाब हो गया।" उसका विचार सुनकर गौतम जी का सिर झुक गया और उन्हें आत्मग्लानि होने लगी कि हमने इस व्यक्ति पर व्यर्थ ही संशय किया, यह तो बहुत ही सच्चा और ईमानदार है।
उन्होंने मन-ही-मन कहा-“मानवता और सदाचार हर कौम के व्यक्ति में होते हैं पर हम उनका पालन नहीं करते और एक-दूसरे को गलत समझते रहते हैं।"
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