राधे ! कबहूँ कि मैं अस अवसर पाऊँ। braj ke bhav pad
राधे ! कबहूँ कि मैं अस अवसर पाऊँ।
महाभाव-सम्पत्ति तुम्हरी लहि, मैं राधा बनजाऊं।।
तुम्हरी कनक-कान्ति अंगन धरि गौरकृष्ण कहलाऊँ।
अपनो रूप-माधुर्य पान करि आपन नयन सिराऊँ ।।
हर पल बेकल हैके पागल, कृष्णनाम-गुण गाऊँ।
"श्यामदास' स्वामिनि ! अस करिहौ, मन की आस पुजाऊँ।।