रे मन मान कही इक मेरी। vrindavan ke pad bhajan
रे मन मान कही इक मेरी।
गौरश्याम अभिराम युगल भज, यामें शोभा तेरी।।
काम-क्रोध-मद-दम्भ कपट तजि, गुरुपद शरण गहे रे।
दीन-हीन है सेव रसिकजन, प्रतिक्षण कृष्ण कहे रे।।
त्याग विषय रस असद वार्ता, भुक्ति-मुक्ति की आसा।
श्रीपति धाम काम कहा तेरो, कर वृन्दावन बासा।।
विलसत-जहँ वृषभानु लाडिली, लाडिलो नेह-निधान।
"श्यामदास' दासी मिलि निशदिन, कर सेवामृत पान।।