चल मन वृन्दावन चल रहिये। chal man vrindavan chal rahiye
चल मन वृन्दावन चल रहिये।
परम पुनीत सो ब्रज की धरणि रज धरि शीश जनम-फल लहिये।।
मञ्जुल सघन पुलिन यमुनातट सुन्दर पर्ण-कुटी चलि छइये।
सन्त टूक लहि पाय यमुना जल मिलि रसिकन राधागुण गइये।।
विहरत आवहिं युगललाल जब मन की व्यथा कथा सब कहिये।
'श्याम' कृपा ऐसी कब करिहो चलि वृन्दावन लौट न अइये।।
braj ke pad