जब जब वृन्दावन सुधि आवत। jab jab vrindavan sudhi avat
जब जब वृन्दावन सुधि आवत।
हृदयाकाश विरहघन उमड़त असुवन धार नैन-भरि लावत।।
फड़क उठत प्रति रोम रोम तन, मति बौरात जिया अकुलावत।
श्रीब्रजरज पावन परसन हित, कल न पड़त पल युग सम जावत।।
पडो रहत तन रहत जहां पर, प्राण-पखेरू कुञ्जन धावत।
'ललितविहारिणि जात न बस कछु, अपनेहि भाग्य धुनत पछितावत।।
braj ke pad