मोहि किन दैव कियो ब्रजवासी। mohi kin dev kiyo vrajvasi
मोहि किन दैव कियो ब्रजवासी।
परसति युगललाल पद-रेण, याचत सुर-सिद्ध-मुनि-कमला सा।।
पावति प्रेम-प्रसाद निरन्तर, निरखति पिया-प्रीतम छाबराता।
मिलि रसिकन नित हरि गुण गावति, तृणसम तोड़ति भव-भयफांसी।।
वृन्दावन सुख श्रीवृन्दावन, तरसत, शिव-हरि-ब्रह्मपुरवाता ।
'ललितविहारिणि' गनि पद-दासी वेगहि कीजै महल-खवासा।।
braj ke pad