कहो रे भैया ! कहाँ गए गौर-निताई kaho re bhaiya kaha gaye gaur nitayi
कहो रे भैया ! कहाँ गए गौर-निताई।
कलियुग के जीवन तारन हित, जो प्रगटे कलि आई।।
जानि सुअवसर मैं कलि जन्मयो, खोजत कहुँ न पाये।
या कलि में प्रगटे सुनि आयो, कोई तो उन्हें मिलाये।।
सुन्यो भक्ति कल्पतरु रोप्यो, फल्यो प्रेम-फल पाये।
परम दयालु गौर माली ने सो फल खाये खवाये।।
माँगे बिन माँगे फल दीन्हें, देश विदेश पठाये।
भरि भरि झोली घर घर बाँटे, मेरे बट नहिं आये।।
पाय प्रेम फल सभी धन्य भए, नर-पशु, पक्षि-पतंगा।
सबने जनम सफल भर पायो, बही प्रेम की गंगा।।
ऐसी भूल भयी कहा मेरी, मो पर चित्त न कीन्हों।
'श्यामदास' प्रभु प्रेम प्रदाता, प्रेम-भिखारी चीन्हों।।