F मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। mere to girdhar gopal - bhagwat kathanak
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। mere to girdhar gopal

bhagwat katha sikhe

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। mere to girdhar gopal

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। mere to girdhar gopal

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। mere to girdhar gopal

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। mere to girdhar gopal

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
तात मात भ्रात बन्धु आपनो न कोई।
छाँड़ि दई कुल की कानि कहा करिहै कोई।।
सन्तन ढिंग बैठि बैठि लोक लाज खोई।
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई।।
मोती मूंगे दिये उतार वनमाला पोई।
अंसुअन जल सींच सींच प्रेमबेलि बोई।।
अब तो बेलि फैल गई आनन्द फल होई।
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोई।।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।
भगत देखि राजी हई जगत देखि रोई।।
दासी 'मीरा' लाल गिरधर तारो अब मोई।

 सभी पदों  की सूची देखने के लिए क्लिक करें 


Bhagwat Kathanak            Katha Hindi
braj ke pad 

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। mere to girdhar gopal


Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3