मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। mere to girdhar gopal

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
तात मात भ्रात बन्धु आपनो न कोई।
छाँड़ि दई कुल की कानि कहा करिहै कोई।।
सन्तन ढिंग बैठि बैठि लोक लाज खोई।
चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई।।
मोती मूंगे दिये उतार वनमाला पोई।
अंसुअन जल सींच सींच प्रेमबेलि बोई।।
अब तो बेलि फैल गई आनन्द फल होई।
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोई।।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।
भगत देखि राजी हई जगत देखि रोई।।
दासी 'मीरा' लाल गिरधर तारो अब मोई।