श्रीचैतन्य दयानिधि धीर। shri chaitanya dayanidhi dheer
श्रीचैतन्य दयानिधि धीर।
कलि कालीन मलीन दीन जन पावन करन परम गम्भीर।।
पूरन चन्द नन्दनन्दन कौ उदै सदा उमगन की भीर ।
बोहित नाव चढ़ाये बहु जन प्रेम मगन करि पठये तीर।।
भाव तरंग अभंग भंग गति, महा मधुर रसरूप शरीर।
निज जन रतन-जाल युत राजत, धुनि हुँकार उसांस समीर।।
त्रिविध ताप तें जरे जीव जे, सीतल किये परस पद-नीर।
करुणा-दृष्टि-वृष्टि सों सींचे जय जय जय 'आनन्द मदीर' ।।