sant updesh in hindi संतों के उपदेश
ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके अमृतोपदेश
कुछ भाई कहा करते हैं कि हम भगवान्के नामका जप बहुत दिनोंसे करते हैं, परंतु जितना लाभ बतलाया जाता है, उतना हमें नहीं हुआ।
इसका उत्तर यह है कि भगवान्के नामकी महिमा तो इतनी अपार है कि उसका जितना गान किया जाय, उतना ही थोड़ा है। नाम-जप करनेवालोंको लाभ नहीं दीखता, इसमें प्रधान कारण है-दस नामापराधोंको छोड़कर जप न करना।
१. सत्पुरुषोंकी निन्दा, २. अश्रद्धालुओंमें नाम- महिमा कहना, ३. विष्णु और शंकरमें भेदबुद्धि, ४. वेदोंमें अश्रद्धा, ५. शास्त्रोंमें अश्रद्धा, ६. गुरुमें अश्रद्धा, ७. नाममाहात्म्यमें अर्थवादकी कल्पना, ८. शास्त्र-निषिद्ध कर्मका आचरण, ९. नामके बलपर शास्त्रविहित कर्मका त्याग तथा १०. अन्य धर्मोंसे नामकी तुलना-ये दस नामापराध हैं।
इन दस अपराधोंका त्याग करके जप करनेपर नाम-जपका शास्त्र-वर्णित फल अवश्य प्राप्त हो सकता है। दस अपराधोंको सर्वथा त्यागकर नाम-जप करनेवालेको प्रत्यक्ष महान् फल प्राप्त होनेमें तो संदेह ही क्या है; केवल श्रद्धा और प्रेम-इन दो बातोंपर खयाल रखकर जो अर्थसहित नामका जप करता है, उसे भी प्रत्यक्ष परमानन्दकी प्राप्ति बहुत शीघ्र हो सकती है।
नाम-जपके साथ-साथ परमात्माके अमृतमय स्वरूपका ध्यान होते रहनेसे क्षण-क्षणमें उनके दिव्य गुण और प्रभावोंकी स्मृति होती है और वह स्मृति अपूर्व प्रेम और आनन्दको उत्पन्न करती है। यदि यह कहा जाय कि रामचरितमानसमें नाम-महिमामें यह कहा गया है-
भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ । नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
फिर श्रद्धासहित नाम जपनेसे ही फल हो, यों ही जपनेसे फल न हो, यह बात कैसे हो सकती है ? तो इसका उत्तर यह है कि 'भाव-कुभाव' किसी प्रकार भी नाम- जपसे दसों दिशाओंमें कल्याण होता है, इस बातपर तो श्रद्धा होनी ही चाहिये।
इसपर भी श्रद्धा न हो तब वैसा फल क्योंकर हो सकता है? इसपर यदि कोई कहे कि 'विचारद्वारा तो हम श्रद्धा करना चाहते हैं, परंतु मन इसे स्वीकार नहीं करता, इसके लिये क्या करें?' तो इसका उत्तर यह है कि बुद्धिके विचारसे विश्वास करके ही नाम- जप करते रहना चाहिये।
भगवान्पर विश्वास होनेके कारण -जपके प्रभावसे आगे चलकर पूर्ण श्रद्धा और प्रेम आप ही प्राप्त हो सकते हैं। परंतु यदि अर्थसहित जप किया xजाय तो और भी शीघ्र परमानन्दकी प्राप्ति हो सकती है।