ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके अमृतोपदेश
बहुत-से भाई कहते हैं कि 'हमलोग वर्षोंसे मन्दिरोंमें भगवान्के दर्शन करने जाते हैं; परंतु हमें विशेष कोई लाभ नहीं हुआ इसका क्या कारण है ?'
तो इसका उत्तर यह है कि विशेष लाभ न होने में एक कारण तो है श्रद्धा और प्रेमकी कमी तथा दूसरा कारण है भगवान्के विग्रहदर्शनका रहस्य न जानना।
मन्दिर में भगवान्के दर्शनका रहस्य है-उनके रूप, लावण्य, गुण, प्रभाव और चरित्रका स्मरण-मनन करके उनके चरणोंमें अपनेको अर्पित कर देना। परंतु ऐसा नहीं होता, इसका कारण रहस्य और प्रभाव जाननेकी त्रुटि ही है।
मन्दिर में जाकर भगवान्के स्वरूप और गुणोंका स्मरण करना चाहिये और भगवान्से प्रार्थना करनी चाहिये, जिससे उनके मधुर स्वरूपका चिन्तन सदा बना रहे और उनकी आदर्श लीला तथा आज्ञाके अनुसार आचरण होता रहे।
जो ऐसा करते हैं, उन्हें भगवत्कृपासे बहुत ही शीघ्र प्रत्यक्ष शान्तिकी प्राप्ति होती है। देह-त्यागके बाद परम गति मिलनेमें तो संदेह ही क्या है!