संतो के अच्छे विचार santo ke vichar
ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दकाके अमृतोपदेश
सेवाके कई स्वरूप हैं। दूसरोंको मान-बड़ाई देना भी सेवा ही है। सेवा रत्नोंकी ढेरी है। उसे लूटनेकी चीज समझकर खूब लूटना चाहिये।
कोई भी नीचा काम-जैसे पैर धुलाना, हाथ धुलाना, पत्तल उठाना आदि-मिल जाय तो समझना चाहिये कि भगवान्की विशेष दया है।
यदि किसी बीमारका टट्टी-पेशाब उठानेका काम मिल जाय तब तो भगवान्की पूर्ण दया समझनी चाहिये। सेवाकार्यमें जितना उच्च भाव रखा जा सके, रखना चाहिये। यदि सेवाकार्यको साक्षात् परमात्माकी सेवा समझा जाय तब तो कहना ही क्या है! उससे परमात्मा बहुत जल्दी मिल सकते हैं।