तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग
हे तात! एक क्षणके सत्संगके बराबर स्वर्ग या कहाँसे मुक्तिका सुख भी नहीं हो सकता। जिस सत्संगसे भगवान् नहीं है।' मिल जायँ, उनसे प्रेम हो जाय, उसकी महिमा कौन गा सकता है !