F अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी॥ - bhagwat kathanak
अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी॥

bhagwat katha sikhe

अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी॥

अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी॥

सत्संगसे ही भगवान्में प्रेम होता है, सत्संग-बिना मोहका नाश नहीं होता, मोह नाश हुए बिना भगवान्में प्रेम नहीं होता।


हमलोगोंसे ज्यादा नीच हो, उसका भी भगवान्में प्रेम हो सकता है, पापीका भी हो सकता है। पशु-पक्षियोंका भी प्रेम भगवान्में हो गया; जैसे-काकभुशुण्डि, वाली, सुग्रीव, हनुमान् आदि। वालीने यही माँगा–'हे नाथ! मैं जिस योनिमें जन्मूं, उसीमें आपके चरणोंमें प्रेम हो।' वाली पहले कैसा था? भगवान् स्वयं कहते हैं-

अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी॥ 
इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई । ताहि बधे कछु पाप न होई॥ 

छोटे भाईकी स्त्री, बहन, पुत्रवधू और पुत्री-ये चारों एक समान हैं, जो इनको बुरी दृष्टि से देखता है, उसे मार डालने में पाप नहीं लगता। 

वाल्मीकि रामायणमें यह बात आती है। भगवान्ने कहा-'तुम्हें इन बातोंका ज्ञान है इसलिये तुम्हारा यह काम नीच है।' इतना होते हुए भी वह भगवान्का प्यारा प्रेमी बन गया, भगवान् पिघल गये वालीने एक दोहा ही कहा-

सुनहु राम स्वामी सन चल न चातुरी मोरि।
प्रभु अजहूँ मैं पापी अंतकाल गति तोरि॥ 

ऐसा पापी भी भगवान्के चरणों में पड़कर भगवान्का भक्त हो गया।  भगवान्ने उसके मस्तकपर हाथ रख दिया। वालीकी कोमल वाणी सुनकर भगवान् पिघल गये, पानीपानी हो गये। भगवान्ने सिरपर हाथ रख दिया, पहले हाथ नहीं था। हमें तो यह समझना चाहिये भगवान्का हर समय हमारे सिरपर हाथ है। वालीका कितना प्रेम हो गया, कहा कि मेरा आपके चरणोंमें प्रेम हो। हमलोग भी वैसे बन जायँ, भगवान्के चरणोंका प्रेम प्राप्त कर लें।

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3