गो-दानका माहात्म्य
गो-पूजाका विधान
गो-दानका बड़ा माहात्म्य कहा गया है। किसी श्रोत्रिय ब्राह्मणको,-जो कुलीन, धर्मका व्याख्याता, शान्त, इन्द्रियजयी एवं निर्लोभ हो,–बुलाकर परमभक्तिके साथ अँगूठी-वस्त्र आदिसे उनकी पूजा करे और फिर सोनेके सींग, चाँदीके खुर, ताँबेकी पीठ एवं काँसेकी दोहनीके साथ गलेमें छोटी-छोटी घंटियाँ पहनाकर लाल वस्त्र एवं मालाओं तथा सोनेसे अलंकृत की हुई सुन्दर गौ उन्हें दान करे।
दाताको चाहिये कि किसी ताँबेके बर्तन में घी लेकर गौकी पूँछको उसमें डाल दे और हाथमें तिल एवं कुशसहित जल लेकर दानका संकल्प करे और 'इस दानसे भगवान् वासुदेव प्रसन्न हों, उन्हींके उद्देश्यसे यह दान करता हूँ,' इस प्रकार कहे। दानके समय दाता निम्नलिखित मन्त्रोंको पढ़े-
यज्ञसाधनभूता या विश्वस्याघौघनाशिनी।
विश्वरूपधरो देवः प्रीयतामनया गवा॥
जलशायी ब्रह्मपिता पद्मनाभः सनातनः।
अनन्तभोगशयनः प्रीयतां परमः प्रभुः॥
समस्त यज्ञ गौकी सहायतासे ही सम्पन्न होते हैं और गौ समस्त जगत्की पाप-राशिका नाश करनेवाली है; अत:- मेरे द्वारा दी जानेवाली इस गौसे विश्वरूप भगवान् प्रसन्न हों।
क्षीरसमुद्रमें शेषकी शय्यापर शयन करनेवाले, ब्रह्माजीके पिता, सनातन परमेश्वर भगवान् पद्मनाभ मेरे इस कर्मसे प्रसन्न हों। ।
इसके बाद अपनी शक्तिके अनुसार ब्राह्मणको सुवर्णकी दक्षिणा दे। उपर्युक्त विधिके अनुसार जो ब्राह्मणको गोदान करता है, उसकी सारी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और वह विष्णुलोकमें प्रतिष्ठित होता है।
इसके बाद अपनी शक्तिके अनुसार ब्राह्मणको सुवर्णकी दक्षिणा दे। उपर्युक्त विधिके अनुसार जो ब्राह्मणको गोदान करता है, उसकी सारी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और वह विष्णुलोकमें प्रतिष्ठित होता है।