आकाशात्पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम्।

आकाशात्पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम्। 
सर्वदेवनमस्कारः केशवं प्रतिगच्छति॥
(लौगाक्षिस्मृति)

जैसे सभी देवताओंको किया गया नमस्कार भगवान्के पास पहुँचता है, ऐसे ही सबके साथ किया गया प्रेमका बर्ताव भी भगवान्के पास पहुँचता है। भगवान् सबके हृदयमें विराजमान हैं। अतः सबमें भगवान्को देखते हुए सबको नमस्कार करो, सबके साथ आदरका, प्रेमका बर्ताव करो। सब सुखी हो जायँ–यह व्यापक भाव है, जो व्यापक परमात्माको प्रकट करनेवाला है।
आकाशात्पतितं तोयं यथा गच्छति सागरम्।

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