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Shiv Puran Katha Hindi mein श्री शिव महापुराण कथा-1

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Shiv Puran Katha Hindi mein श्री शिव महापुराण कथा-1

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 Shiv Puran Katha Hindi mein श्री शिव महापुराण कथा

Shiv Puran Katha Hindi mein श्री शिव महापुराण कथा

श्री शिव महापुराण कथा – भूमिका

परम मंगलमय परात्पर परब्रह्मा परमपिता परमात्मा अकारण करुणा वरूणालय अकारण करुणा कारक अचिंत कल्याण गुण गुण निधान सर्वेश्वर सर्वाधिक पति श्रेष्ठ आचरणवान प्रजा के सुख दाता एवं संघार कर्ता पार्वतीनाथ प्रथमादि गणों के स्वामिन आकाश आदि अष्टमूर्तियों वाले विश्वरूप विज्ञान के पूर्ण ज्ञाता देवाधिदेव त्रिनेत्र धारी दुःस्वप्न नाशक पंचतत्वोत्पादक विश्वेश्वर मंगल कर्ता आदि अंत रहित सब के कारण श्री सांब सदाशिव भगवान के चरणो में कोटिशः नमन नतमस्तक वंदन एवं अभिनंदन। परांबा भगवती जगदीश्वरी शंकर शिव प्राण वल्लभा आदि जगत में व्याप्त रहने वाली जगत की आधारभूता परम शक्ति श्री जगदंबा मां पार्वती के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम ।


समस्त भूतादिक - सीयराम मय सब जग जानीकरहु प्रणाम जोर जुग पानी । समुपस्थित भगवत भक्त शिवकथा अनुरागी सज्जनों भक्ति मई मातृ शक्ति भगनी बांधवों भगवतचरण चंञ्चरीक भगवत पादारविंद मकरन्द रस पिपासु सुधी जन भूवि भावुक रसिक बृंदजन।


हम सबका यह परम सौभाग्य ही है कि भगवान शंभु शिवाय कि यह सुंदर कथा पर सम्मिलित होकर इस शिव कथा मंदाकिनी पर गोता लगाने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ हैजीवन में ऐसा क्षण बड़े ही पुन्य से मिलने वाला होता है । श्री शिव महापुराण की कथा बड़ी दिव्य और विलक्षण है इसी कथा का अनुसंधान कर बारहों आदित्य अपना कार्य करते हैं।

 Shiv Puran Katha Hindi mein श्री शिव महापुराण कथा

श्री शिव महापुराण का शब्दार्थ- शिव यानी कल्याण ( कल्याण करने वाला ) जो कीर्ति ज्ञान सहित धर्म अर्थ काम मोक्ष को विस्तार से संतुष्ट और पुष्ट करता है और हमेशा हमेशा के लिए अपने चरणों में भक्ति प्राप्त कराता है वह है शिव कल्याण।
आगे महापुराण शब्द का अर्थ है- महा माने सभी प्रकार से और सभी में श्रेष्ठ जो हो वह महा कहलाता है एवं पुराण का मतलब है जो लेखनी ग्रंथ कला के रूप में प्राचीन हो या जो लेखनी ग्रंथ कथा के रूप में पुराना हो परंतु जगत के जीवो को हमेशा नया ज्ञान शांति एवं आनंद देते हुए नया या सरल जीवन का उपदेश देते हुए सनातन प्रभु से संबंध जोड़ता है वह है पुराण।


कथा का मतलब होता है कि- परमात्मा के सानिध्य में निवास के सुख की अनुभूति की स्थापना करा दे या परमात्मा के तत्व का ज्ञान कराकर परमात्मा से संबंध जोड़ दें एवं शरीर त्यागने पर उन परमात्मा के दिव्य सानिध्य में पहुंचाकर परमात्मा की सायुज्य मुक्ति यानी प्रभु के चरणों में विलय करा दे उसे कथा कहते हैं ।


श्री शिव महापुराण श्री वैष्णव भक्ति का उद्गम ग्रंथ है। वेदों एवं उपनिषदों का सार है । भगवत शिव रस सिंधु है। ज्ञान बैराग और भक्ति का घर या प्रसूति है। शिव तत्व को प्रकाशित करने वाला अलौकिक प्रकाश पुंज है । मृत्यु को भी मंगलमय बनाने वाला है। विशुद्ध ज्ञान शास्त्र है । मानव जीवन को सुखमय बनाने वाला है। व्यक्ति को व्यक्ति एवं समाज को सभ्यता संस्कृति संस्कार देने वाला है । आध्यात्मिक रस वितरण का प्याऊ है । परम सत्य की अनुभूति कराने वाला है काल या मृत्यु के भय से मुक्त करने वाला है ।

 Shiv Puran Katha Hindi mein श्री शिव महापुराण कथा

यह श्री शिव महापुराण कथा शिव स्वरूप है यह कल्याण प्रद है । यह शिव महापुराण में एकादश खंड है तथा विश्वेश्वर ,रुद्र आदि सात सहितायें हैं । शिव महापुराण के प्रारंभ में महात्म्य का वर्णन किया गया है जो सात अध्यायों में हैप्रारंभ के दो अध्याय में श्री शिव महापुराण की महिमा व देवराज को देवलोक की प्राप्ति । मध्य के तीन अध्यायों में चंचुला बैराग्यचंचुला को शिव पद की प्राप्ति और बिंदुग का उद्धार । अंतिम के दो अध्याय में श्री शिव पुराण श्रवण विधि व श्रोताओं के पालन करने योग्य नियम बताए गए हैं। महात्म्य का अर्थ होता है- महिमा=  महात्म्य ज्ञान पूर्वकम् श्रद्धा भवति।

महिमा के ज्ञान के पश्चात ही उसमें श्रद्धा उत्पन्न होती है ।

जाने बिनु न होत परतीति। बिनु परतीति होत नहीं प्रीति ।।

आइए शिव जी का ध्यान करते हुए हम माहात्म्य की कथा में प्रवेश करें-
सच्चिदानन्द रूपाय भक्तानुग्रह कारिणे। माया निर्मित विश्वाय माहेश्वराय नमो नमः।।  
सत + चित + आनंद= सच्चिदानंदसत् का मतलब त्रिकालावधी जिसका अस्तित्व सत्य हो। चित् माने प्रकाश होता हैअर्थात जो स्वयं प्रकाश वाला है और अपने प्रकाश से सब को प्रकाशित करने वाला है । आनंद माने आनंद होता है जो स्वयं आनंद स्वरूप होकर समस्त जगत को आनंद प्राप्त कराता है ,इस प्रकार ऐसे कार्यों को करने वाले को सच्चिदानंद कहते हैं ।

वे सच्चिदानंद कल्याण स्वरूप आदिशिव ही हैं। अर्थात सत् भी शिव हैं। चित भी शिव हैं और आनंद भी शिव हैं। तथा जिनका आदि मध्य और अंत तीनों ही सत्य है ,तथा सत्य था एवं सत्य रहेगा । ऐसे शाश्वत सनातन श्री शिव को ही सच्चिदानंद कहते हैं । रूपाय ,माने ऐसे गुण या धर्म या रूप वाले । भक्तानुग्रह कारिणे- अपने भक्तों पर अनुग्रह करने वाले।

माया निर्मित विश्वाय- वह अपनी माया से ही विश्व का निर्माण करते हैं ,पालन व संघार करते हैं। माहेश्वराय नमो नमः - ऐसे देवों के देव महादेव महेश्वर के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं। 

संपूर्ण शिव कथानक की सूची देखें

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