F shiv puran katha श्री शिव महापुराण कथा -2 - bhagwat kathanak
shiv puran katha श्री शिव महापुराण कथा -2

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shiv puran katha श्री शिव महापुराण कथा -2

shiv puran katha श्री शिव महापुराण कथा -2

 shiv puran katha श्री शिव महापुराण कथा

shiv puran katha श्री शिव महापुराण कथा

शौनक जी के साधन विषयक प्रश्न करने पर सूत जी का उन्हें शिव महापुराण की महिमा सुनाना-

हे हे सूत महाप्राज्ञ सर्वसिद्धान्तवित् प्रभो।
आख्याहि मे कथासारं पुराणानां विशेषतः।। मा-1-1
शौनक जी ने पूंछा- कि हे सूत जीज्ञान और वैराग्य के सहित भक्ति से प्राप्त होने वाली विवेक बुद्धि कैसे होती हैसाधु पुरुष किस कामक्रोध आदि विकारों का निवारण करते हैं।
जीवाश्चासुरतां प्राप्ताः प्रायो घोरे कलाविह। मा-1-3
कलयुग में जीव असुर स्वभाव के हो गए हैं उन्हें शुद्ध बनाने का उपाय क्या हैआप मुझे कोई ऐसा साधन बताइए जो कल्याणकारी वस्तुओं में श्रेष्ठ हो । जिसके करने से शीघ्र ही अंतःकरण की शुद्धि हो जावे तथा निर्मल पुरुष को सदा के लिए शिवजी की प्राप्ति हो जावे । श्री सूत जी बोले-


धन्यस्त्वं मुनिशार्दूल श्रवण प्रति लालसः।
अतो विचार्य सुधिया वच्मि शास्त्रं महोत्तमम्।। मा-1-6
हे ऋषि वृन्द आप धन्य होआप में कथा सुनने की उत्सुकता है तो सुनिए ,मैं एक अति उत्तम शास्त्र का वर्णन करता हूं । यह शास्त्र भक्ति उत्पन्न करने वाला हैशिवजी को प्रसन्न करने वाला हैकाल रूपी सर्प का नाश करने वाला रसायन स्वरूप है ।


सर्वप्रथम इस शास्त्र को शिवजी ने अपने श्री मुख से श्री सनत कुमार जी से कहा था इसीलिए इसका नाम शिव महापुराण है ।

श्री सनत कुमार जी ने महर्षि वेदव्यास जी से इस शास्त्र का वर्णन किया । व्यास जी ने लोक कल्याणार्थ इसे संक्षेप में कहा। इस शास्त्र के श्रवणपठन एवं मनन करने से कलियुगी जीवो का मन शुद्ध होता है और अंत में शिव पद प्राप्त करते हैं ।

इसके श्रवण मात्र से प्राणी को मुक्ति मुक्ति तथा राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त हो जाता है । इसके श्रोता गण शिव रूप होते हैं। यदि प्रतिदिन ना सुन सके तोदो घड़ी ही बैठकर के सुने चाहे एक मुहूर्त अथवा आधा क्षण ही सही लेकिन इस पुराण को अवश्य श्रवण करें।

 shiv puran katha श्री शिव महापुराण कथा

हे महर्षियों सर्व प्रकार के दान एवं यज्ञो के करने से जिस फल की प्राप्ति होती है ,वह फल इसके श्रोता को स्वयं ही प्राप्त हो जाते हैं।


एकोजरामरः स्याद्वै पिबन्नेवामृतं पुमान्।

शम्भोः कथामृतं कुर्यात् कुलमेवाजरामरम्।। मा-1-28


अमृत पान करने से तो केवल अमृत पान करने वाला ही अमर होता हैकिंतु भगवान शिव का यह कथामृत संपूर्ण कुल को ही अजर अमर कर देता है ।

श्री शिवपुराण की सात सहिंता हैचौबीस हजार श्लोक हैं। यह सातों संहिता-1- विश्वेश्वर संहिता, 2-रूद्र संहिता, 3-शत रुद्री संहिता, 4-कोटी रुद्री संहिता, 5-उमा संहिता ,6-कैलाश संहिता, 7-वायु संहिता। यह सात संहिता वाला शिव महापुराण परम दिव्य हैसर्वोपरि ब्रह्म तुल्य है ,शुभ गति देने वाला है ,इन सातों संहिता वाले शिव पुराण को जो पढ़ लेता है अथवा सुन लेता है उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

शैवं पुराणमिद मात्मविदां वरिष्ठं
    
सेव्यं सदा परमवस्तु सता समर्च्यम्।
तापत्रयाभिशमनं सुखदं सदैव
    
प्राणप्रियं विधिहरीश मुखामराणाम्।। मा-1-50
यह शिवपुराण आत्म तत्वज्ञों के लिए सदा सेवनीय हैसत पुरुषों के लिए पूजनीय हैतीनों प्रकार के तापों का शमन करने वाला हैसुख प्रदान करने वाला है तथा ब्रह्मा विष्णु महेश आदि देवताओं को प्राणों के समान प्रिय है ।
सूत जी बोले कि-
सूत सूत महाभाग धन्यस्त्वं परमार्थ वित्। मा-2-1
हे सूत जी आप परम धन्य हैं वह अद्भुत कथा सुनाई है जो पापों का नाश करने वाली ,मन को पवित्र करने वाली और भगवान शिव को प्रसन्न करने वाली है।

अब आप कृपा करके यह बतलाइए कि इस कथा के सुनने से कलयुग में कौन-कौन से पापी पवित्र हो जाते हैं तब श्री सूत जी बोले-


ये मानवाः पापकृतो दुराचार रता खलाः।
कामादि निरतानित्यं तेपि शुध्यन्त्यनेन वै।। मा-2-5
जो दुराचारी ,पापी ,कामी एवं दुष्ट जन भी इस कथा के द्वारा शुद्ध हो जाते हैं । जो लालचीमिथ्या भाषीपिता माता को दुख देने वालेदंभी पाखंडी और हिंसक भी शुद्ध हो जाते हैं । जो पाप पारायण दुर्बुद्धि देव एवं ब्राह्मण साधु का द्रव्य खाने वाले पुरुष भी इसके द्वारा पवित्र हो जाते हैं ।

अब एक प्राचीन इतिहास सुनिए- जिसके सुनने से बड़े से बड़े पापों का नाश हो जाता है ।

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देवराज की कथा)
किरात नगर में एक दुर्बलदुराचारि,दरिद्री ब्राह्मण रहता था वह देव आराधना एवं धर्म से विमुख थावह सन्ध्या तो क्या स्नान भी नहीं करता था। उसका नाम देवराज था। उसने बहुत अधर्म द्वारा बहुत सा धन एकत्रित किया और धर्म में एक कोढ़ी नहीं लगाया। वह एक समय स्नान करने तालाब पर गया वहां पर शोभावती नाम की गणिका को देख कर व्याकुल हो गया वह सुंदरी भी एक धनी ब्राह्मण को अपने ऊपर आसक्त देखकर प्रसन्न हो गई और एक दूसरे से बातचीत होने पर दोनों में प्रेम हो गया । वे दोनों अपने आप को आपस में स्त्री पुरुष समझ बिहार करने लगे ।

ब्राह्मण उस वैश्या के साथ ही बैठना खाना-पीना एवं शयन क्रीडा आदि करने लगा। उस ब्राह्मण को माता-पिता एवं पत्नी ने बार बार रोका परंतु उसने एक भी ना मानी। एक दिन उसने-
प्रसुप्तान् न्यवधीद् दुष्टो धनं तेषां तथा हरत्। मा-2-25
उस नीच ने ईर्ष्या वश रात्रि को सोए हुए माता-पिता पत्नी को मार डाला और उनका धन हर लिया और उस कामासत्त वेश्या को दे दिया।

 shiv puran katha श्री शिव महापुराण कथा

वह पापी दैव योग से प्रतिष्ठानपुर ( झूंसी प्रयाग ) में आया वहां उसने एक शिवालय देखा जिसमें बहुत से साधु जन एकत्रित थे । वहां वह बीमार पड़ गया इस अवस्था में उसने ब्राह्मण के मुख से शिव पुराण की कथा श्रवण की ।

एक माह के अंदर देवराज मृत्यु को प्राप्त हो गया तब यमदूत उसे पकड़कर यमपुरी ले गए उसी समय शरीर पर भस्म लगाएरुद्राक्ष धारण किए त्रिशूल उठाए रूद्र गण क्रोध में भरकर शिवलोक से चलकर के यमपुरी पहुंचे और यमदूतों को भगाकर और देवराज को छुड़ाकर अपने परम अद्भुत विमान पर चढ़ाकर वे गण जबकि कैलाश को ही जा रहे थे कि वहां पर महान कोलाहल हुआ ।

जिसे सुनकर धर्मराज भी वहां आ गए वहां उन्होंने साक्षात शिव जी के चार दूतों को देखा तब धर्मराज ने उनकी विधि पूर्वक पूजन किया ज्ञान चक्षु से धर्मराज सब कुछ जान गए।

देवराज को लेकर शिवगण कैलाश पर जा पहुंचे और पार्वती सहित दयासागर शिवजी को उसे अर्पित किया।

भगवान शिव की कथा देवराज जैसे पापी भी सुनने के बाद शिवलोक को प्राप्त कर लेते हैं तो फिर प्रेमी भक्त जनों का कहना ही क्या । इसलिए हम सब को चाहिए कि भगवान आशुतोष के चरणों में अपने मन को लगाए रखें उनकी कथाओं का श्रवण और चिंतन मनन करते रहें क्योंकि यह मनुज तन बड़े दुर्लभ से प्राप्त होता है । और यह एक अवसर है। इसीलिए संत जन कहते हैं-
क्षणभंगुर जीवन की कलिका,
कल प्रात को जाने खिली न खिली
मलयाचल की सूचि शीतल मंद,
सुगंध समीर मिली ना मिली।
कलि काल कुठार लिए फिरता,
तन नम्र पे चोट झिली न झिली
रट ले शिव नाम अरी रसना ,
फिर अंत समय में हिली न हिली।।
शिव कथा सुनकर देवराज शिवलोक का अधिकारी हो गया।
बोलिए साम्बशिवाय भगवान की जय

संपूर्ण शिव कथानक की सूची देखें

Shiv Puran Katha Hindi mein श्री शिव महापुराण कथा

 shiv puran katha श्री शिव महापुराण कथा

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