shiv puran in hindi शिव पुराण कथा हिंदी में -3

 shiv puran in hindi शिव पुराण कथा हिंदी में

shiv puran in hindi शिव पुराण कथा हिंदी में

( चंचला और बिंदुग की कथा )
सौनक जी ने कहा- हे प्रभु आप बुद्धिमान हो, भाग्यशाली एवं सर्वज्ञ हो आपकी कृपा से मैं भी बार-बार कृतार्थ हूं क्योंकि इस इतिहास को सुनकर मेरा मन अत्यंत प्रसन्न हुआ है।


धन्या धन्या कथा शम्भोस्त्वं धन्यो धन्य एव च।
यदा कर्णनमात्रेण शिवलोकं व्रजेन्नरः।। मा-3-4
सदाशिव की जिस कथा के सुनने मात्र से



मनुष्य शिवलोक प्राप्त कर लेता है वह कथा धन्य है, धन्य है और कथा का श्रवण कराने वाले आप भी धन्य हैं, धन्य हैं। सूतजी बोले-

शृणु शौनक वक्ष्यामि त्वदग्रे गुह्यमप्युत।
यतस्त्वं शिव भक्तानां अग्रणी्र्वेद वित्तमः।। मा-3-5
हे सौनक जी आप शिव भक्त और वेद ज्ञाता हैं इसलिए आपके सामने गोपनीय कथावस्तु का भी वर्णन करूंगा सुनिए-

 shiv puran in hindi शिव पुराण कथा हिंदी में

समुद्र के निकट एक वास्कल नाम का ग्राम था वहां वैदिक धर्म को त्याग कर महा पापी जन निवास किया करते थे। वह बड़े दुष्ट थे जिनकी आत्मा दुर्विषयी थी, खल कपटी थे ज्ञान वैराग्य एवं सत्य धर्म तो जानते ही नहीं थे। उन सबकी स्त्रियां भी स्वेच्छा चारणी कुटिला पाप परायण थी ।

इस प्रकार दुर्जनों से पूर्ण उस वास्कल ग्राम में एक विन्दुग नाम का अधम ब्राह्मण भी रहता था। वह दुरात्मा और महा पापी था।

वह सुधर्मणी चंचुला नाम की अपनी पत्नी को त्यागकर वैश्या गामी हो गया। उसकी पत्नी चंचुला पहले तो धर्म में अडिग रही फिर वह भी अपने पति की तरह धर्म से भटक गयी।

 

एक बार बिम्दुग ने अपनी पत्नी को पर पुरुष के साथ देखा तो उसने उसको मारा पीटा तब चचुंला ने कहा तुम्हें अपना विचार नहीं है ।जो मुझ नव यौवना और पति सेवा परायण पत्नी को छोड़कर स्वेच्छा चारणी गणिकाओं के साथ रहते हो। 

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तो यह मन की पीड़ा को मैं कैसे सहन करूं तब उस दुर्बुद्धि पापी ने पत्नी से कहा, अब मैं तुम्हारे मन की बात कहता हूं तुम निर्भय होकर पर पुरुष के साथ बिहार करो । परंतु उनसे धन भी लो जिससे तेरा और मेरा दोनों का कार्य सिद्ध होता रहेगा। 

 

पति की यह बात सुनकर चंचुला बहुत प्रसन्न हुई अब तो दोनों कुकर्म में पड़ गए बहुत समय तक ऐसे ही करते करते एक दिन कुमति दुष्ट बिंदुग मृत्यु को प्राप्त हो गया और घोर  पापों के कारण वह नरक में बहुत काल पर्यंत नरक को भोगा ।  

 

इसके बाद वह पापी विंध्याचल पर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ । बिंदुग के मर जाने के बाद मूर्खा चंचुला पर पुरुषों के साथ घर में रह गई । एक बार वह दैव योग से पुण्य पर्व के आने पर नारी बंधुओं के साथ गोकर्ण क्षेत्र में आ गई । 

 

सब के साथ उसने भी तीर्थ में स्नान किया वह घूमते हुए किसी देवालय में पहुंचकर उसने दैवज्ञ के मुख से शिव पुराण की पवित्र कथा सुनी। वह कथा से उसको अपने पाप को याद कर भय से कांप उठी । 

 

जब कथा समाप्त हो गई और श्रोता गण भी चले गए तब वह डरती हुई शिवभक्त कथावाचक के पास जा करके बोली हे महाराज- 

त्वमेव मे गुरुर्ब्रह्मस्त्वं माता त्वं पितासि च।

उद्धरोद्धर मां दीनां त्वामेव शरणं गताम्।। मा-3-56

आप ही मेरे गुरु हैं, आप ही माता और आप ही पिता हैं आपकी शरण में आई हुई मुझ दीन अबला का उद्धार कीजिए। उद्धार कीजिए । 

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ब्राह्मण बोले- मुझे प्रसन्नता है कि तुझे समय पर ज्ञान हो गया, यह सब सदाशिव की ही कृपा है। अब तू भयभीत न हो शिव जी की कृपा से तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे । शिव कथा के श्रवण से तुम्हारी ऐसी सुबुद्धि हुई है जो विषयों से बैराग्य हुआ है । 

 

पश्चाताप संयुक्त तुम्हारी मति शुद्ध हो गई । इस शिव महापुराण की कथा के श्रवण से जैसा हृदय पवित्र होता है वैसा अन्य उपायों से नहीं होता है और हृदय के पवित्र हो जाने पर शिव पार्वती उसके हृदय में आकर विराजमान हो जाते हैं । तब वह शुद्धात्मा शिव के परम पद को पाता है।

 

इसलिए सभी वर्ण इस कथा को सुनें क्योंकि शिव जी ने स्वयं इसकी रचना की है। 

सर्वेषां श्रेयसां बीजं सत्कथा श्रवणं नृणाम् । मा-4-5

 

इस उत्तम कथा का श्रवण समस्त मनुष्यों के लिए कल्याण का बीज है । शिव भक्ति से विमुख माया मोह में पड़े हुए मनुष्य को बिना पूंछ का पशु ही जानना चाहिए। 

तृणं न खादन्नपिजीवमानस्तद्भागदेयं परमं पशूनाम्।

बिना घास खाए जीवित रहता है यह पशुओं के लिए भाग्य की बात है । 

हे ब्राह्मणी तू भी परम पवित्र कथा सुनकर विषयों से मन को हटाले, शंकर भगवान की कथा के श्रवण से तेरा हृदय पवित्र हो जाएगा तब तुझे मुक्ति प्राप्त होगी । 

सूत जी बोले- यह कहकर दयालु ब्राम्हण शिव ध्यान में मग्न मौन हो गए। तब चंचुला प्रसन्न चित्त हो आंखों से आंसू बहाती हुई हाथ जोड़कर ब्राह्मण के चरणों में गिर पड़ी और कहने लगी , हे भगवन आपने मुझे कृतार्थ कर दिया। 

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हे शिव भक्त आप धन्य हैं, परोपकार परायण हैं, श्रेष्ठ जनों में वर्णनीय हैं । हे साधु में नरक रूपी समुद्र में गिर रही हूं मेरा उद्धार करो। 


उसकी रुचि देखकर के पंडित जी उसे शिवपुराण की कथा सुनाने लगे । इस प्रकार उस महा क्षेत्र में श्रेष्ठ ब्राह्मण से शिवपुराण की उत्तम कथा उसने सुनी । भक्ति ज्ञान बैराग वर्धनी एवं मुक्ति दायिनी कथा को सुनकर वह कृतार्थ हो गई। 


शिव की कृपा से शिव रूप का ध्यान उसने प्राप्त कर लिया। नित्य प्रति तीर्थ जल में स्नान करती तथा जटा तथा वत्कल धारण कर लिए थे, सारे अंगों पर भस्म रमाए रहती थी , रुद्राक्ष पहनती थी , निरंतर शिव जी का ध्यान करती रहती। 

समय पूरा होने पर भक्ति ज्ञान वैराग्य से युक्त इसने बिना कष्ट के ही देह छोड़ दिया। तब शिव गणों से संयुक्त एक शोभायमान दिव्य विमान स्वयं शिव जी ने भेजा वह विमान पर बैठ के दिव्य शिवलोक को गई । 


शिवपुरी में त्रिलोचन महादेव जी का दर्शन किया, शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले थे । गणेश, भृगीं,नंदीश्वर ,वीरभद्र आदि जिनकी उपासना कर रहे थे।वह महादेव नीलकंठ, पंचमुख ,त्रिलोचन ,चंद्रशेखर रूप से दर्शन दे रहे थे। 

 

जिनके वामांग में विद्युत के समान गौरा जी विराजमान थी

कर्पूर गौरं गौरीशं सर्वालंकार धारिणम्।

ऐसा दिव्य स्वरूप देखकर चचुंला गौरी शंकर जी के चरणों में बार बार प्रणाम करती है । पार्वती जी ने तो उस चचुंला को दिव्य रूप देकर अपनी सखी बना लिया। 

 

वह परम सुखी हो गई उस ज्योति स्वरूप सनातन लोक में उसने निवास प्राप्त कर लिया । 

सूत जी बोले- हे शौनक जी एक दिन चंचुला उमा देवी के पास जाकर प्रणाम कि और दोनों हाथ जोड़कर वह उनकी स्तुति करने लगी। 

गिरिजे स्कन्द मातस्त्वं सेवितां सर्वदा नरैः।

सर्वसौख्य प्रदे शम्भुप्रिये ब्रह्मस्वरूपिणी।। मा-5-3

हे गिरिराज नंदनी, हे स्कंद माता मनुष्यों ने सदा ही आपकी सेवा की है । समस्त सुखों को देने वाली हे शंभू प्रिये, ब्रह्म स्वरूपणी आप विष्णु और ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा सेव्य हैं, आपके चरणो में कोटि कोटि प्रणाम ।


वह चंचुला ऐसे स्तुति करते करते चुप हो गई, उसके नेत्रों से प्रेमाश्रु बह चले । तब करुणा से भरी हुई शंकर प्रिया भक्तवत्सला पार्वती देवी ने चंचुला से बड़े प्रेम पूर्वक बोलीं- हे सखी चंचुले मैं तुम्हारी की हुई इस स्तुति से बहुत प्रसन्न हूं बोलो क्या वर मांगती हो?

संपूर्ण शिव कथानक की सूची देखें

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