Vidya Dadati Vinayam - विद्यां ददाति विनयं

Vidya Dadati Vinayam - विद्यां ददाति विनयं

Vidya Dadati Vinayam - विद्यां ददाति विनयं

 विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् ।

पात्रात्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मम् ततः सुखम् ।।४।।


प्रंसगः- विद्यायाः फलं निरूपयति-


अन्वय:- विद्या विनयं ददाति, विनयात पात्रतां याति, पात्रत्वात धनम आप्नोति, धनात् धर्मं (आप्नोति) ततः सुखम् (आप्नोति) ।।४।।


व्याख्या- विद्या विनयं = नम्रतां, ददाति, विनयात = नम्रस्वभावात पात्रता = सर्वकार्यकरणयोग्यतां याति = प्राप्नोति, पात्रत्वात = योग्यत्वात धनम, धनाद्धर्मं ततः सुखम् आप्नोति, इति रीत्या विद्यैवैका सर्वसुखसाधनमस्तीति भावः ।।४।

भाषा- विद्या से विनय, विनय से योग्यता, योग्यता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है।।४।

 नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

Vidya Dadati Vinayam - विद्यां ददाति विनयं

  1. प्रणम्य नीतिशास्त्र
  2. सिद्धिः साध्ये सतामस्तु
  3. भारतीयार्यमर्यादां
  4. अजराऽमरवत्प्राज्ञो
  5. विद्या ददाति विनयं
  6. यन्नवे भाजने लग्नः
  7. मित्रलाभः सुहृद्भेदो
  8. अनेकसंशयोच्छेदि
  9. यौवनं धनसम्पतिः
  10. कोऽर्थः पुत्रेण जातेन
  11. अजातमृतमूर्खाणां
  12. देशवंशजनैकोऽपि
  13. दाने तपसि शौर्ये च
  14. पुण्यतीर्थे कृतं येन
  15. अर्थागामो नित्यमरोगिता च
  16. यस्य कस्य प्रसूतोऽपि
  17. आहारनिद्रा भयसन्ततित्वं
  18. धर्मार्थकाममोक्षणां
  19. आयुः कर्म च वित्तं च
  20. दैवे पुरुषकारे चा
  21. अन्यच्च अत्युत्कटैरिहत्यैस्तु
  22. उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति 
  23. समाश्वासनवागेका
  24. यथा टेकेन चक्रेण
  25. पूर्वजन्मकृतं कर्म
  26. उद्यमेन हि सिद्धयन्ति
  27. रूपयौवनसम्पन्ना
  28. आचार्यस्त्वस्य यां जातिं
  29. हीयते हि मतिस्तात
  30. ब्राह्मादिषु विवाहेषु
  31. रूपसत्वगुणोपेता
  32. इतेरेषु तु शिष्टेषु
  33. कीटोऽपि सुमनःसंगा
  34. अनिष्टादिष्टलाभेऽपि
  35. न संशयमनारुह्य
  36. ईर्ष्या घृणी त्वसंतुष्टः
  37. न धर्मशास्त्रं पठतीति कारणं
  38. अवशेन्द्रियचित्तानां
  39. स हि गगनविहारी
  40. सहसा विदधीत न क्रिया
  41. शंकाभिः सर्वमाक्रान्त
  42. काव्यशास्त्राविनोदेन
  43. लोभात्क्रोधः प्रभवति
  44. न गणस्याग्रतो गच्छे 
  45. आपदामापतन्तीनां
  46. विपदि धैर्यमथा
  47. सम्पदि यस्य न हर्षों
  48. षड्दोषाः पुरुषेणेह
  49. अल्पानामपि वस्तूनां
  50. संहतिः श्रेयसी पुंसां
  51. माता मित्रं पिता चेति
  52. यस्माच्च येन च यथा
  53. रोग-शोक-परीताप 
  54. समानीव आकूतिः
  55. धर्मार्थकाममोक्षाणां 
  56. सर्वमन्यत् परित्यज्य
  57. धनानि जीवितञ्चैव
  58. यदि नित्यमनित्येन
  59. शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनं
  60. यानि कानि च मित्राणि
  61. भक्ष्यभक्षकयोः प्रीति
  62. अज्ञातकुलशीलस्य 
  63. तावद भयस्य भेतव्यं
  64. जातिमात्रेण किं
  65. अरावप्युचितं कार्य
  66. तृणानि भूमिरुदकं
  67. सर्वहिंसानिवृत्ता
  68. एक एव सुहृद्धर्मो 
  69. यत्र विद्वज्जनो नास्ति
  70. अयं निजः परो वेति
  71. न कश्चित्कस्यचिन्मित्रं
  72. आपत्सु मित्रं जानीयाद् 
  73. उत्सवे व्यसने चैव
  74. सुहृदां हितकामानां
  75. अपराधो न मेऽस्तीति
  76. दीपनिर्वाण गन्धञ्च
  77. परोक्षे कार्यहन्तारं
  78. संलापितानां मधुरैर्वचोभि
  79. उपकारिणि विश्रब्धे
  80. प्राक्पादयोः पतति खादति
  81. दुर्जनः प्रियवादी च
  82. त्रिभिर्वस्त्रिभिर्मासै
  83. दुर्जनः परिहर्तव्यो
  84. द्रवत्वात्सर्वलोहानां
  85. किञ्च नारिकेलसमाकारा
  86. शुचित्वं त्यागिता शौर्य
  87. रहस्यभेदो याच्या च
  88. पटुत्वं सत्यवादित्वं
  89. मनस्यन्यद्वचस्यन्यत्
  90. ददाति प्रतिगृह्णाति
  91. स्थानमुत्सृज्य गच्छन्ति
  92. चलत्येकेन पादेन
  93. परोपदेशे पण्डित्यं
  94. यस्मिन्देशे न सम्मानो
  95. गुरुरग्निर्द्विजातीनां
  96. सुहृदि निरन्तरचित्ते
  97. धनवान्बलबाँल्लोके 
  98. अर्थेन तु विहीनस्य
  99. यस्यार्थास्तस्य मित्राणि
  100. तानीन्द्रियाण्य विकलानि
  101. दारिद्रयाध्रियमेति ह्रीपरिगतः
  102. अर्थनाशं मनस्तापं
  103. सेवेव मानमखिलं
  104. रोगी चिरप्रवासी
  105. लोभेन बुद्धिश्चलति
  106. क्षणेनाग्नौ क्षणेनाप्सु 
  107. असेवितेश्वरद्वार
  108. को धर्मो भूतदया

Vidya Dadati Vinayam - विद्यां ददाति विनयं

0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close