संहतिः श्रेयसी पुंसां /sahati shreysi punsam shloka niti
संहतिः श्रेयसी पुंसां स्वकुलैरल्पकैरपि।
तुषेणापि परित्यक्ता न प्ररोहन्ति तण्डुलाः । ।१८।।
प्रसंग:- पुनः एकताया महत्वं प्रकारान्तरेण कथयति
अन्वयः- पुंसाम् अल्पकैः अपि स्वकुलैः सह संहतिः श्रेयसी । तुषेणापि, परित्यक्ताः तण्डुलाः न प्ररोहन्ति ।।१८।।
व्याख्या- पुंसां मनुष्याणां, अल्पकैरपि-स्वल्पसंख्याकैरपि, स्वकुलैः सह मेलनम सम्भूय एकत्रावस्थानमित्यर्थः श्रेयसी =कल्याणकारी भवति । यथा त्वचा अपि निस्तत्वेनाप्यतितुच्छेन पदार्थेनेत्यर्थः परित्यकताः वियूक्ता, अर्थात निरस्तत्वचः तण्डुलाः न प्ररोहन्ति-अंकुरिताः न भवन्ति।
भाषा- जिनसे कुछ भी कार्य नहीं हो सकता ऐसे भी अपने कूल के लोगों के साथ मिलकर रहना कल्याणकारी होता है। जैसे निःसत्व भी धान की भूसी धान से अलग हो जाने पर चावल को उगने नहीं देती और यदि वही चावल के साथ रह जाती है तो बोने पर वह अंकुरित होता है और वह फूलता-फलता है।।१८।।