विपदि धैर्यमथा /vipadi dhairya matha shloka niti

विपदि धैर्यमथा /vipadi dhairya matha shloka niti

विपदि धैर्यमथा /vipadi dhairya matha shloka niti

विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः

यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् ।।१४।।


प्रसंग:- महात्मलक्षणं निर्दिशति-


अन्वयः- विपदि धैयम् अथ अभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता, युधि विक्रमः, यशसि च अभिरुचिः श्रुतौ व्यसनम् इदं हि महात्मनां प्रकतिसिद्धम


व्याख्या- विपदि = आपत्प्राप्तौ, धैर्यम् = स्थिरचित्तता, अभ्युदये = पत्याप्तौ, क्षमा = अपकारादिसहिष्णुता, विशिष्टसम्पल्लाभेऽपि उद्धतेन केनाचित्साकं स्वयमपि औद्धत्येन न वर्तितव्यकिमति भावः । सदसि = विद्वत्संसदि, वाक्पटता = वैदुष्यपूर्ण वाङ्नैपुण्यं, युधि = रणभुवि, विक्रमः = पराक्रमः, यशसि -कीर्ती यशोलाभ इत्यर्थः अभिरुचिः = अभिलाषः, श्रुतौ-शास्त्रे व्यसनम = आसक्तिः इदं = अनन्तरोदीरितमेतत्सर्व, हि = निश्चितं, महात्मनां = उदारचरितानां, प्रकृतिसिद्धं = स्वभावसिद्धम् भवति । महात्मनो जन्मत एवोपरिनिर्दिष्टगुणवन्तो भवन्तीति भावः ।।१४।।


-भाषा-विपत्ति आने पर धीरज रखना, उन्नति होने पर शान्त रहना, समरभूमि में साहसी होना, यश के उपार्जन में इच्छा रखना, शास्त्र की आलोचना में अपने को लीन रखना, ये सब बातें महात्माओं में जन्म से सिद्ध हुआ करती हैं।।१४ |

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विपदि धैर्यमथा /vipadi dhairya matha shloka niti


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