सम्पदि यस्य न हर्षों /sampadi yasya na harsho shloka niti

 सम्पदि यस्य न हर्षों /sampadi yasya na harsho shloka niti

सम्पदि यस्य न हर्षों /sampadi yasya na harsho shloka niti

सम्पदि यस्य न हर्षों विपदि विषादो रणे च धीरत्वम्।।

तं भुवनत्रयतिलकं जनयति जननी सुतं विरलम् ।।१५।।

प्रसंग:- उत्तमपुत्रस्वरूपं निरूपयति


अन्वयः- सम्पदि यस्य न हर्षः (भवति) विपदि विषाद: न (भवति) रणे च धीरत्वं (भवति), तं भुवनत्रयतिलकं विरलं सुतं (काचिदेव) जननी जनयति ।


व्याख्या - सम्पदि = सम्पतौ सत्याम् यस्य न हर्षः, विपदि = विपत्तौ च न, विषादः = खेदः, रणे संग्रामे धीरत्वं = धैर्यम्, एवभूतं भुवनानां = स्वर्गमर्त्यपातालानां त्रयं तस्य तिलकस्तं भुवनत्रयतिलकं = त्रिलोकरत्नमित्यर्थः सतं = पत्रं विरलं = काचिदेव जननी = माता जनयति = प्रसते ।।१५।।


भाषा - जिसको सम्पति में न प्रसन्नता होती है, न विपत्ति में दुःख होता है और जो युद्ध में भी धैर्य को नहीं छोड़ता है। ऐसे त्रिभूवन के तिलक के समान विरले ही पुत्र को माता जन्म देती है।।१५।

 नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

 सम्पदि यस्य न हर्षों /sampadi yasya na harsho shloka niti

0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close