देशवंशजनैकोऽपि /desh vanshaja naikopi shloka niti

 देशवंशजनैकोऽपि /desh vanshaja naikopi shloka niti

देशवंशजनैकोऽपि /desh vanshaja naikopi shloka niti

देशवंशजनैकोऽपि कायवाकचेतसां चयैः ।

येन नोपकत: पंसा तस्य जन्म निरर्थकम् ।।११।।


प्रसंग:- जन्मनः निरर्थकताकारणानि कथयति-


अन्वयः- येन पंसा कायवाकचेतसां चयैः देववंशजनैक: अपि 'यदि न उपकृतः 'तदा' तस्य जन्म निरर्थकम् ।।१।


व्याख्या- येन केनचन, पुंसा=पुरुषेण, कायश्च वाकच चेतश्च कायवाक चेतांसि तेषां कायवाक्चेतसां देहवाङ्मनसां, चयैः निचयैः, समस्तैरसमस्तैर्वा, देशश्च वंशश्च देशवंशी, देशवंशयोः जनाः देशवंशजनाः, तेभ्यः वंशोद्भवेभ्यश्च मध्याद् एकोऽपि, 'यदि' नोपकृतः उपकारं न प्रापितः, तदा तस्य तथाविधस्य अनुपकारिणः जनस्य जन्म-उत्पत्तिः, निरर्थकम्-निष्प्रयोजनं भवति ।।११।


भाषा - जिस किसी पुरुष ने शरीर, वाणी और मन इन तीनों द्वारा ङ्केअथवा इसमें से किसी एक के द्वारा देश का अथवा अपने वंश का एक भी उपकार यदि न किया तो ऐसे अनुपकारी पुरूष का जन्म लेना ही व्यर्थ है।।११।

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