दाने तपसि शौर्ये च/dane tapasi shaurye cha shloka niti

 दाने तपसि शौर्ये च/dane tapasi shaurye cha shloka niti

दाने तपसि शौर्ये च/dane tapasi shaurye cha shloka niti

दाने तपसि शौर्ये च यस्य न प्रथितं वशः।

अन्यच्च विद्यायामर्थलाभे च मातुरूच्चार एव सः । ।१२।।


प्रसंग:- दानादिभिः यस्य यशः न प्रथितं तस्य जीवनं कर्थमिति प्रतिपादयति


अन्वयः- यस्य यशः दाने, तपसि, शौर्ये, विद्यायाम् अर्थलाभे च न प्रथित सः मातुः उच्चारः एव ।।१२।। -


व्याख्या- यस्य यश: कीर्तिः दाने, तपसि-तपस्यायां शौर्य-पौर विद्यायां विद्योपार्जने अर्थलाभे धनोपार्जने, च न प्रथितन प्रसृतम्, सः पुरुषः मातु:- जनन्याः, उच्चार एव पूरीष एव भवति ।।१२।।


भाषा - जिस पुरुष की कीर्ति दान देने में, तपस्या में, वीरता में विद्योपार्जन में और धनोपार्जन में नहीं फैली वह पुरुष अपनी माता की केवल विष्ठा के ही समान होता है ।।१२।।

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