F अजातमृतमूर्खाणां /ajata mrita murkhanam shloka niti - bhagwat kathanak
अजातमृतमूर्खाणां /ajata mrita murkhanam shloka niti

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अजातमृतमूर्खाणां /ajata mrita murkhanam shloka niti

 अजातमृतमूर्खाणां /ajata mrita murkhanam shloka niti

 अजातमृतमूर्खाणां /ajata mrita murkhanam shloka niti

अजातमृतमूर्खाणां /ajata mrita murkhanam shloka niti

 अजातमृतमूर्खाणां वरमाद्यौ न चान्तिमः ।

सकृद् दुःखकरावाद्यावन्तिमस्तु पदे पदे ।।१०।।


प्रसंग:- मूर्खपुत्रस्य सर्वनिकृष्टतां निर्धारयति-


अन्वयः- अजातमृतमूर्खाणाम् आद्यौ वरम्, अन्तिमः न च (वरम्) आद्य सक ददुख करौ, अन्तिमस्तु पदे-पदे (दुःखदो भवतीति न स वरमिति


व्याख्या- न जातः अजातः, स च मृतश्च मूर्खश्च अजातमतमूर्खाः तेषामजातमृतमूर्खाणां, )मध्ये आद्यौ–प्रथमद्विौ) (अजातःमृतश्च) वरं श्रेष्ठौ, अन्तिमश्च न श्रेष्ठ इत्यर्थः यतः आद्यौ द्वौ) संकृददुःखकरौ-एकवारमेव दुःखजनकौ किन्त. (अन्तिम: मूर्खः पदे-पदे प्रतिपदं, दु:खकरो भवतीति भावः ।।२०।


भाषा - उत्पन्न ही न हुआ अथवा उत्पन्न होकर उसी समय मर गया और मूर्ख इन तीनों में से उत्पन्न ही न होना और होकर मर जाना ये दोनों प्रकार के पुत्र अच्छे हैं, तीसरा (मूर्ख) तो अच्छा नहीं, क्योंकि पहले कहे हुये दोनों केवल एक बार दुःख देते हैं, मूर्ख तो पदे-पदे हर समय दुःख देता रहता है।।१०।।

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