सुहृदि निरन्तरचित्ते /suhradi nirantar chitte shloka niti

 सुहृदि निरन्तरचित्ते /suhradi nirantar chitte shloka niti

सुहृदि निरन्तरचित्ते /suhradi nirantar chitte shloka niti

सुहृदि निरन्तरचित्ते गुणवति भृत्येऽनुवर्तिनि कलत्रे।

स्वामिनि शक्तिसमेते निवेद्य दुःखं सुखी भवति ।।६५ ।।


प्रसंग:- केषामग्रे दुःखनिवेदनं कर्त्तव्यमिति निर्दिशति-


अन्वयः- निरन्तरचित्ते सुहृदि, गुणवति भृत्ये, अनुवर्तिनि कलत्रे शक्तिसमेते स्वामिनि, दुःखं निवेद्य सुखी भवति, लोक इति शेषः । १६५।।


व्याख्या- निर्गतम् अनन्तरं यस्मात् तन्निरन्तरम्, तथाभूतं चित्तं यस्य असौ निरन्तरचित्तस्तस्मिन् निरन्तरचित्ते-अभिन्नहृदये सुहदि-मित्रे, गुणवति-गणिनि भृत्ये दासे, अनुवर्तिनि =अनुकूले कलत्रे भार्यायां, शक्तिसमेते धनजनबलसम्पन्ने स्वामिनि प्रभौ, दुःखं मानसिक कष्ट, निवे द्य=श्रावयित्वा लोकः सुखी-अपगतदुःखः भवति–जायते।।६५ ।।


भाषा- अभिन्नहृदयी मित्र को, गुणी नौकर को, अपने अनुकूल रहने वाली स्त्री को, बलवान् मालिक को दुःख सुनाने पर लोक सुखी होता है । ६५ ।।

नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

 सुहृदि निरन्तरचित्ते /suhradi nirantar chitte shloka niti

0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close