यदि नित्यमनित्येन /yadi nitya manityena shloka niti

 यदि नित्यमनित्येन /yadi nitya manityena shloka niti

यदि नित्यमनित्येन /yadi nitya manityena shloka niti

यदि नित्यमनित्येन निर्मलं मलवाहिना।

यशःकायेन लभ्येत तन्न लब्धं भवेन्नु किम् ।।२६।।


प्रसंग:- शरीरं परित्यज्य यश उपलब्धेर्महत्वं वर्णयति-


अन्वयः- यदि अनित्येन मलवाहिना कायेन नित्यं निर्मलं यशः लभ्येत, किं तत् लब्धं न भवेन्न।।२६।।


व्याख्या- यदि अनित्येन = नश्वरेण, मलवाहिना = मूत्रपूरीषादिमलाधारण कायेन = देहेन, नित्यं = अविनाशि, निर्मल = शुभं यशः = कीर्तिः, लभ्येत = प्राप्येत, किं तत् = तर्हि, जनैः, लब्धं = प्राप्तं, न भवेत् वस्तु । अपितु सर्वमेव लब्धं भवेदिति शेषः।।२६।।


भाषा- और भी देखों-यदि नाशवान और मलों को धारण करने वाले इस घणित शरीर से स्थायी और निर्मल यश मिले तो क्या नहीं मिला?

 नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

 यदि नित्यमनित्येन /yadi nitya manityena shloka niti


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