शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनं/shashidivakar yorgraha shloka niti

 शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनं/shashidivakar yorgraha shloka niti

शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनं/shashidivakar yorgraha shloka niti

शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनं, गजभुजंगमयोरपि बन्धनम्।

मतिमतां च विलोक्य दरिद्रतां, विधिरहो बलवानिति मे मतिः ।।२७ ।।


प्रसंग:- भाग्यमेव सर्वतो बलवत्तरमिति साधयति-


अन्वयः- शशिदिवाकरयोः ग्रहपीडनं, गहभुजंगमयोः अपि बन्धनं, मतिमतां च दरिद्रतां विलोक्य 'अहो! विधिः बलवान्, इति मे मतिः (भवति)।


व्याख्या- शशी = चन्द्रः, दिवकारः = सूर्यः तयोः प्रधानभूतयोरपि सूर्य चन्द्रयोः ग्रहेण = राहुणा पीडनम् = ग्रसनम्, गजः करी, भुजंगमः = सर्पः तयोः बन्धनं = श्रृंखलया मन्त्रादिना च वशीकरणम्, मतिमतां = बुद्धिमतां, दरिद्रतां = निर्धत्वं च विलोक्यं 'अहो विधिः बलवान् = दैवमेव प्रबलमिति, मे = मम, मतिः == बुद्धिः भवति ।।२७।।


भाषा- क्योंकि चन्द्रमा और सूर्य का राहु द्वारा ग्रसा जाना, हाथी और सर्पो का सिक्कड़ों और मन्त्रों द्वारा फंसाया जाना तथा बुद्धिमान लोगों की दरिद्रता देखकर मैं तो समझता हूँ कि भाग्य ही सबसे अधिक प्रबल है।।२७।।

 नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

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