यानि कानि च मित्राणि /yani kani cha mitrani shloka niti

 यानि कानि च मित्राणि /yani kani cha mitrani shloka niti 

यानि कानि च मित्राणि /yani kani cha mitrani shloka niti

यानि कानि च मित्राणि कर्तव्यानि शतानि च।

पश्य मूषिकमित्रेण कपोताः मुक्तबन्धनाः ।।२८।।


प्रसग :- बहुमित्रकरणम्पयुक्तमिति शिक्षयति-


अन्वयः- (जनेन) यानि कानि च शतानि मित्राणि कर्तव्यानि, पश्य कपोताः मूषिकमित्रेण मुक्तबन्धनाः (बभूवुः) ।।२८ ।।


व्याख्या- यानि कानि च = योग्यानि अयोग्यानि वा, शतानि = शतंसख्यातोऽप्यधिकानि मित्राणि कर्तव्यानि (यथा) पश्य, मूषिकमित्रण - सदा सता उन्दरेण बहवः = कपोताः, मुक्तानि = उन्मोचितानि बन्धानि = पाश नानि येषां ते तथाभूताः कृताः ।।२८ ।।


भाषा - छोटे हो या बड़े निर्बल हों या सबल हों, अधिक से अधिक संख्या में मित्र बना लेना चाहिये। क्योंकि न जाने किसके द्वारा किस समय कैसा काम निकल जाय। देखो-एक मित्र मूषिक ने अनेक कबूतरों को बन्धनों से मुक्ता करा दिया।

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