भक्ष्यभक्षकयोः प्रीति /bhakshya bhakshyoh shloka niti

 भक्ष्यभक्षकयोः प्रीति /bhakshya bhakshyoh shloka niti

भक्ष्यभक्षकयोः प्रीति /bhakshya bhakshyoh shloka niti

भक्ष्यभक्षकयोः प्रीतिर्विपत्तेरेव कारणम्।

श्रृगालात्पाशबद्धोऽसौ मृगः काकेन रक्षितः ।।२६।।


प्रसंग:- भक्ष्यभक्षकप्रीतेरनौचित्यमदाहरति-


अन्वयः- भक्ष्यभक्षकयोः प्रीतिः विपतेः एव कारणं (भवति) श्रगलात पाशबद्धः असौ मृगः काकेन रक्षितः । ।२६।।


व्याख्या - भक्ष्यश्च भक्षकश्च भक्ष्यभक्षको तयोः = खाद्यखादकयोः प्रीतिः = मित्रता, विपत्तेः = अनर्थस्य एव, कारणं = हेतुः (भवति) तथाहि श्रृगालात् = जम्बकात कपटमित्रात, पाशेन बद्धः = जालेन नियमितः, असौ मृगः काकेन = वायसेन, रक्षितः = मोचितः ।।२६।।


भाषा - भक्ष्य और भक्षक की परस्पर मित्रता विपति का ही कारण होती है जैसे श्रृगाल के कारण जाल में फंसे हुये उस मृग की कौवे ने रक्षा की

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