अज्ञातकुलशीलस्य /agyat kul shilasya shloka niti

 अज्ञातकुलशीलस्य /agyat kul shilasya shloka niti

अज्ञातकुलशीलस्य /agyat kul shilasya shloka niti

अज्ञातकुलशीलस्य वासो देयो न कस्याचित् ।

मार्जारस्य हि दोषेणे हतो गृध्रो जरद्गवः ।।३०।।


प्रसंग:- कुलशीलमविज्ञाय वासदानस्यानौचित्यमुदाहरति-


अन्वयः - अज्ञातकुलशीलस्य कस्यचित् वासः न देयः । हि मार्जारस्य दोषेण जरद्गवः गृध्रः हतः ।।३०।।


व्याख्या- कुलं च शीलं च कुलशीले, न ज्ञाते कुलशीले यस्य सः, तस्य अज्ञातकुलशीलस्य = अपरिचितवंशस्वभावस्य, कस्यचित अपि वासः = आश्रयः न देयः, हि = यस्मात कारणात, मार्जारस्य दोषेण = बिडालस्य अपराधेन, जरद्गवः = जरदगवाभिधः गृध्रः = दृष्टिहीना: गध्रपक्षी, हतः = विनाशितः अन्यैः पक्षिभिरिति शेषः ।।३०।।


भाषा- जिस व्यक्ति का कुल और शील (स्वभाव) ज्ञान न हो तो ऐसे किसी को अपने घर में रहने को जगह नहीं देनी चाहिये। ऐसे ही अपरिचित कुल गैर स्वभाववाले बिलार के दोष के कारण बेचारा अन्धा जरदगव नाम का गीध मारा गया। ।३०।।

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