तावद भयस्य भेतव्यं /tavad bhayasya bhetavyam shloka niti

 तावद भयस्य भेतव्यं /tavad bhayasya bhetavyam shloka niti

तावद भयस्य भेतव्यं /tavad bhayasya bhetavyam shloka niti

तावद भयस्य भेतव्यं यावद् भयमनागतम्।।

आगतं तु भयं वीक्ष्य नरः कुर्याद्यथोचितम।।३१।।


प्रसंग:- आगतस्य भयस्य प्रतीकारमेवोचितामिति निरूपयति-


अन्वयः- यावत् भयम् अनागतं (भवति) तावत् भयस्य भेतव्यम्, तु भयम् आगतं वीक्ष्य, नर: यथेचितं कुर्यात् ।।३१।।


व्याख्या- यावत् यावत्पर्यन्तं भयं भयकारणम्, अनागतं-अप्राप्तं भवति तावत् तावत्कालपर्यन्तमेव, भयस्य भयहेतोः, भेतव्यं त्रसितव्यम्, तु किन्तु भयं भयकारणम्, आगतं दृष्टवा, नरः, यथोचितं-उपयुक्तं यत्प्रीतकारं तत् कुर्यात् ।।३१।।


भाषा- भय का कारण जब तक उपस्थित नहीं होता तभी तक उससे डरना चाहिए किन्तु भय को उपस्थित हुआ देखकर मनुष्य जैसा उचित हो वैसा उसके प्रतीकार का उपाय करना चाहिये।।३१।।

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