जातिमात्रेण किं /jati matrena kim shloka niti

 जातिमात्रेण किं /jati matrena kim shloka niti

जातिमात्रेण किं /jati matrena kim shloka niti

जातिमात्रेण किं कश्चिद्धन्यते पूज्यते क्वचित् ।

व्यवहारं परिज्ञाय वध्यः पूज्योऽथवा भवेत् ।।३२।।


प्रसंग:- मानापमानयोः कारणं व्यवहार एवेति निर्दिशति-


अन्वयः- (जनैः) क्वचित् कश्चित् जातिमात्रेण हन्यते पूज्यते किम? व्यवहारं परिज्ञाय (एव) वध्यः अथवा पूज्यः भवेत् ।।३२।।


व्याख्या- किं क्वचित्=कुत्रचिदपि, कश्चिद् जातिमात्रेण केवलया जात्या, हन्यते-वध्यते, पूज्यते-अर्च्यते वा? व्यवहारं आचरणं परिज्ञाय-ज्ञात्वां, एव वध्यः अथवा पूज्यः भवेत् ।।३२।।


भाषा- क्योंकि-क्या कहीं कोई केवल जातिमात्र से मारने योग्य अथवा पूजा करने योग्य होता है? व्यवहारको जानकर ही प्राणी मारने योग्य या पूजने योग्य हुआ करता है।।३२।।

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