अरावप्युचितं कार्य /arava pyuchitam karya shloka niti

 अरावप्युचितं कार्य /arava pyuchitam karya shloka niti

अरावप्युचितं कार्य /arava pyuchitam karya shloka niti

अरावप्युचितं कार्यमातिथ्यं गृहमागते।

छेत्तुः पार्श्वगतां छायां नोपसंहरते द्रुमः ।।३३।।


प्रसंग:- अभ्यागतस्य सत्कारः कर्तव्य एवेति प्रतिपादयति--


अन्वयः- गृहम् आगते अरौ अपि उचितम् आतिथ्यं कार्यम्, द्रुमः पार्श्वगतां छेत्तुः छायां न उपसंहरते।।३३।।


व्याख्या- गृहम् आगते अरौ अपि = शत्रौ अपि, उचितं = व्यवहारोचितम् आतिथ्यं सत्कारः कार्यम्=कर्त्तव्यम् (पश्य) द्रुमः वृक्षः, पार्श्वगतां निकटस्थितां, छेत्तुः छेदनकर्तुः सकाशात् छायां स्वीयां निरातपतां, न उपसंहरते न अपसारयति ।।३३।।


भाषा- घर में आये हुए शत्रु का भी उचित सत्कार करना चाहिए। देखों-वृक्ष भी अपने काटने वाले के ऊपर की छाया नहीं हटाता अर्थात उसे काटते समय भी छाया में ही रखता है।।३३।।

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