धनानि जीवितञ्चैव /dhanani jivitam chaiva shloka niti

 धनानि जीवितञ्चैव /dhanani jivitam chaiva shloka niti

धनानि जीवितञ्चैव /dhanani jivitam chaiva shloka niti

धनानि जीवितञ्चैव परार्थे प्राज्ञ उत्सृजेत्।

सन्निमित्ते वरं त्यागो विनाशे नियते सति ।।२५।।


प्रसंग:- परार्थे प्राणोत्सर्गस्यौचित्यं प्रतिपादयति-


अन्वयः- प्राज्ञः परार्थे एव धनानि जीवितं च उत्सृजेत्, विनाशे नियते सति सन्निमित्ते त्यागः वरम् ।।२५।।


व्याख्या- प्राज्ञः बुद्धिमान् जनः, धनानि, जीवितं च प्राणांश्च, परार्थ परोपकारार्थे एव उत्सृजेत्=त्यजेत्, विनाशे धनजीवनयो शे, नियते निश्चिते सति, सत् शोभनं निमित्तं परोपरकारादिरूपं कारणं तस्मिन, त्यागः धनस्य जीवितस्य च परित्यागः, वरं श्रेष्ठः ।।२५।।


भाषा- विद्वान् को चाहिये कि परोपकार के लिए ही अपने धन और प्राणों का त्याग करे, धन और जीवन का विनाश जब निश्चित है तब परोपकार आदि अच्छे काम में ही उनका त्याग करना श्रेयस्कार है।।२५।।

 नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

 धनानि जीवितञ्चैव /dhanani jivitam chaiva shloka niti

0/Post a Comment/Comments

आपको यह जानकारी कैसी लगी हमें जरूर बताएं ? आपकी टिप्पणियों से हमें प्रोत्साहन मिलता है |

Stay Conneted

(1) Facebook Page          (2) YouTube Channel        (3) Twitter Account   (4) Instagram Account

 

 



Hot Widget

 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

भागवत कथा सीखने के लिए अभी आवेदन करें-


close