चलत्येकेन पादेन /chalatyekena padena shloka niti
चलत्येकेन पादेन तिष्ठत्येकेन बुद्धिमान् ।
न समीक्ष्य परं स्थानं पूर्वमायतनं त्यजेत् ।।६१।।
प्रसंग:- परदेशगमननीतिं निर्दिशति-
अन्वयः- बुद्धिमान् एकेन पादेन चलति, एकेन तिष्ठति, परं स्थानम् असमीक्ष्य पूर्वम आयतनं न त्यजेत।।६१।।
व्याख्या- बुद्धिमान् एकेन पादेन चलति, तथा एकेन ततः अपरेण, पादेन तिष्ठति गमनात् विरतो भवति, परम्-अन्यत् स्थानं देशं, असमीक्ष्य तत्र गमनेन लाभालाभावविचार्य पूर्व प्रागधिकृत, आयतन-स्थानं न त्यजेत् ।।६१।।
भाषा-बुद्धिमान मनुष्य एक पैर से चलता है और दूसरे पैर से स्थिर रहता है अर्थात् जब तक अगला पैर जमा नहीं लेता तब तक पीछे का पैर नहीं उठाता इसलिए दूसरे स्थान को बिना भली-भाँति समझे अपने पहले स्थान को नहीं छोड़ना चाहिये ।।६१।।
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जवाब देंहटाएंaapke vichar se hmm jarur isko sahi karege
हटाएंab aap copy kar sakte hain aapke kahne par chalu kar diya gya hai
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