अयं निजः परो वेति /ayam nija paro veti shloka niti

 अयं निजः परो वेति /ayam nija paro veti shloka niti

अयं निजः परो वेति /ayam nija paro veti shloka niti

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।

या उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।३८ ।।


प्रसंग:- उदाराणां चरित्रं निबध्नाति-


अन्वयः- 'अयं निजः परः वा' इति गणना लघुचेतसाम्, उदारचरितानामतु वसुधा एव कुटुम्बकम् ।।३८||

व्याख्या- अयं निजः = आत्मीयः, अयं पर: अनात्मीयः, इति = इत्थं गणना विचारणा, लघु = क्षुद्रम् चेतः = मानसं येषान्ते तेषां लघुचेतसाम् = क्षुद्राशयानां भवती शेषः । उदारं चरितं येषां तेषाम् उदारचरितानाम् = महानुभावानां तु वसुधा = समग्रा पृथ्वी एव भूलोकस्थ समस्तप्राणिवर्ग एवेत्यर्थः, कुटुम्बकं = आत्मीयकोटिगतं भवतीति शेषः । ।३८ ।।


भाषा- और भी- यह अपना है, यह पराया है, इस प्रकार की गणना संकुचित हृदयवाले व्यक्तियों की होती है जो लोग उदार चित्तवाले होते हैं उनके लिए सारा संसार ही परिवार के समान है। ।३८ ।।

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