यस्य कस्य प्रसूतोऽपि /yasya kasya prasutopi shloka niti

 यस्य कस्य प्रसूतोऽपि /yasya kasya prasutopi shloka niti

यस्य कस्य प्रसूतोऽपि /yasya kasya prasutopi shloka niti

यस्य कस्य प्रसूतोऽपि गुणवान्पूज्यते नरः।

धनुर्वशविशुद्धोऽपि निर्गुणः किं करिष्यति ।।१५।।


प्रसंग:- गुणवतो नरस्यैव पूज्यतां निर्धारयति -


अन्वयः- यस्य कस्य प्रसूतः अपि गुणवान् नरः (लोके) पूज्यते, वंशविशुद्धः अपि धनुः (यदि) निगुर्णः, (तदा सः) किं करिष्यति।।१५।।


व्याख्या- यस्य कस्य = अज्ञातवंशस्य वंशविशुद्धिरहितस्यापीत्यर्थः, प्रसूतः कुले उत्पन्नः, गुणवान गणशाली नरः, लोके पूज्यते, वंशविशुद्धःछिदादिरहितवंशरचितः, अपि, धनु: कोदण्डः निर्गुणः= प्रत्यंचारहितश्चेत्तदा सः किं करिष्यति? अत्र 'धनु' शब्द: पुल्लिंग उकारान्तो वर्तते।।१५।

भाषा- किसी भी वंश में उत्पन्न मनुष्य दे गणी है तो समाज में उसका सम्मान होता है जैसे श्रेष्ठ बांस से बने हुये भी गुण (प्रत्यंचा) रहित धनुष से क्या उपयोग लिया जा सकता है? अर्थात कोई नहीं।।१५।।

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