अर्थागामो नित्यमरोगिता च /arthagamo nityamarogita cha shloka niti

 अर्थागामो नित्यमरोगिता च /arthagamo nityamarogita cha shloka niti

अर्थागामो नित्यमरोगिता च /arthagamo nityamarogita cha shloka niti

अर्थागामो नित्यमरोगिता च, प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।

वश्यश्च पुत्रोऽर्थकरी च विद्या, षड्जीवलोकस्य सुखानि राजन् ।।१४।।


प्रसंग:- जीवलोकस्य षट्सुखानि प्रतिपादयति -


अन्वयः - हे राजन्! नित्यम् अर्थागमः, अरोगिता च, प्रिया प्रियवादिनी च भार्या, वश्यः पुत्रश्च, अर्थकारी विद्या च, (एतानि) जीवलोकस्य, षटसुखानि


व्याख्या- हे राजन्! नित्यं = निरन्तरं, अर्थस्य धनस्य आगमः = प्राप्तिः, आरोगिता-निरोगिता च, भार्या पत्नी प्रिया प्रियकारिणी, प्रियं वदतीति प्रियवादिनी मधुरभाषिणी च, वश्यः =आज्ञाकारी पत्रः, एवम अर्थं करोतीति अर्थकारी= धर्मार्थकाममोक्षरूपपुरुषार्थचतुष्टयप्रदा विद्या च, एतानि षट् तु जीवलोकस्य-संसारिणो जनस्य, सुखानि सन्तीति शेषः । ।१४।


भाषा - और – हे राजन् । नित्य धनागम, स्वस्थता प्रेम करनेवाली सत्य बोलने वाली स्त्री, आज्ञापालक पुत्र तथा धनोपार्जन करने वाली विद्या ये मनुष्य लोक के छ: सुख है ।।१४।।

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