F आहारनिद्रा भयसन्ततित्वं/ahar nidra bhaysanta titvam shloka niti - bhagwat kathanak
आहारनिद्रा भयसन्ततित्वं/ahar nidra bhaysanta titvam shloka niti

bhagwat katha sikhe

आहारनिद्रा भयसन्ततित्वं/ahar nidra bhaysanta titvam shloka niti

आहारनिद्रा भयसन्ततित्वं/ahar nidra bhaysanta titvam shloka niti

 आहारनिद्रा भयसन्ततित्वं/ahar nidra bhaysanta titvam shloka niti

आहारनिद्रा भयसन्ततित्वं/ahar nidra bhaysanta titvam shloka niti

आहारनिद्राभयसन्ततित्वं सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम् ।

ज्ञानं हि तेषामधिकं विशिष्टं ज्ञानेन हीना: पशुभिः समानाः।।१६।।


प्रसंग:- धर्मस्य मानवतासम्पादकत्वं निरूपयति -


अन्वयः- नराणाम् आहारनिद्राभयसन्ततित्वम् एतत् पशुभिः समानम् (भवति) तेषां ज्ञानं हि अधिकं विशिष्टं (भवति) ज्ञानेन हीनाः पशुभिः समानाः (भवन्ति)।।१६|


व्याख्या- नराणाम्, आहारश्चनिद्रा च भयं च सन्ततित्वं च तेषां समाहारः आहारनिद्राभयसन्ततित्वं, एतत्-आहारादिचतुष्टयम्, पशुभिः समानम् पशुतुल्यम् एव, किन्तु तेषां मनुष्याणां ज्ञानं हि बोध एव, अधिक विशिष्टं-पशुभ्यो व्यावर्तकं भवति । अतः ज्ञानेन हीनास्तु नराः पशुभिः, समाना:-तुल्या भवन्ति ।।१६।।


भाषा - मनुष्य में और पशुओं में आहार निद्रा, भय और सन्ततित्व ये चारों गुण समान होते हैं किन्तु एक ज्ञान ही ऐसा गुण है जो मनुष्य में विशेष रूप से होता है इसलिये ज्ञान से रहित मनुष्य पशु के समान हुआ करते हैं। ।१६।

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 आहारनिद्रा भयसन्ततित्वं/ahar nidra bhaysanta titvam shloka niti

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