F असेवितेश्वरद्वार /aseviteshvara dwara shloka niti - bhagwat kathanak
असेवितेश्वरद्वार /aseviteshvara dwara shloka niti

bhagwat katha sikhe

असेवितेश्वरद्वार /aseviteshvara dwara shloka niti

असेवितेश्वरद्वार /aseviteshvara dwara shloka niti

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असेवितेश्वरद्वार /aseviteshvara dwara shloka niti

असेवितेश्वरद्वारमदृष्टविरहव्यथम्।

अनुक्तक्लीबवचनं धन्यं कस्यापि जीवनम् । ७६।।


प्रसंग:- धन्यजीवनस्य स्वरूपं प्रदर्शयति।


अन्वयः- असेवितेश्वरद्वारम् अदृष्टविरहव्यथम् अनुक्तक्लीबवचनं कस्यापि जीवनं धन्यम् । ७६ ।।


व्याख्या- न से वितम् ईश्वरस्य द्वारं येन तदसे वितेश्वरद्वारं = अनवलोकितधनिकद्वारम्, अदृष्टा विरहव्यथा येन तत्तथाभूतम् अदृष्टविरहव्यथम् = अननुभूतविरहदु:खं, न उक्तं क्लीबवचनं येन तत् अनुक्तक्लीबवचनम = अनुच्चारितदीनवचनं एवम्भूतं कस्याऽपि जनस्य जीवनं धन्यम् । ७६ ।


भाषा- जिसने किसी धनिक का द्वार नहीं देखा, जिसने अपने प्रियजनों का वियोग दुःख नहीं देखा और जिसने दीन होकर कभी किसी को कुछ कहा नहीं ऐसे किसी विशिष्ट पुरूष का जीवन धन्य है । ७६ ।।

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