F एक एव सुहृद्धर्मो /ak ava suhrada dharmo shloka niti - bhagwat kathanak
एक एव सुहृद्धर्मो /ak ava suhrada dharmo shloka niti

bhagwat katha sikhe

एक एव सुहृद्धर्मो /ak ava suhrada dharmo shloka niti

एक एव सुहृद्धर्मो /ak ava suhrada dharmo shloka niti

 एक एव सुहृद्धर्मो /ak ava suhrada dharmo shloka niti

एक एव सुहृद्धर्मो /ak ava suhrada dharmo shloka niti

एक एव सुहृद्धर्मो निधनेऽप्यनुयाति यः।

शरीरेण समं नाशं सर्वमन्यत्तु गच्छति।।३६।।


प्रसंग:- जीवानां धर्म एव परमं मित्रमिति निर्दिशति-


अन्वयः- एकः धर्मः सुहृत्, यः निधने अपि अनुयाति, अन्यत् सर्वं तु शरीरेण समं नाशं गच्छति।।३६।।


व्याख्या- एकः = एकमात्रं धर्म एव सुहृत् = मित्रं यः निधने = मरणे अपि मरणान्तरमपीत्यर्थः अनुयाति = अनुगच्छति, अन्यत् सर्वं तु = अतः परं सर्ववस्तजातं त शरीरेण समं = देहेन साधु, नाशं = विलयं गच्छति = याति ।।३६ ।।


भाषा-धर्म ही यथार्थ में एकमात्र है, जो मरने के उपरान्त भी साथ में जाता है शेष सभी पुत्र, कलत्र, धन, वैभव आदि तो शरीर के साथ ही नष्ट हो जाते हैं। ।३६ ।

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 एक एव सुहृद्धर्मो /ak ava suhrada dharmo shloka niti

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