यथा टेकेन चक्रेण /yatha tekena chakrena shloka niti

 यथा टेकेन चक्रेण /yatha tekena chakrena shloka niti

यथा टेकेन चक्रेण /yatha tekena chakrena shloka niti

यथा टेकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् ।

तथा पुरुषकारेण विना दैवं न सिद्धयति ।।२३।।


प्रसंग:- पुरुषकारस्य भाग्यफलप्रदातृत्वं निरूपयति-


अन्वयः- यथा हि एकेन चक्रेण रथस्य, गतिः न भवेत् एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ।।२३।।


व्याख्या- यथा हि एकेन चक्रेण रथांगेन रथस्य गति: गमनं न भवेत न भवति तथा परुषकारेण-पौरुषेण विना दैवं भाग्यं, न सिद्धयातफलति।


भाषा - जिस प्रकार एक पहिये से रथ नहीं चलता, उसी प्रकार विना पुरुषार्थ किये भाग्य नहीं फलता ।।२३।।

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 यथा टेकेन चक्रेण /yatha tekena chakrena shloka niti


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